मेरी साँसे रुक-रुक सी जाती है
जब वो सामने से गुजर के जाती है-
ज़रा रुक तेरे दिल में क़याम करता हूँ
वहाँ छुपे इश्क़ को अपने नाम करता हूँ
बज़्म -ए- याराँ ही नज़र आया है अभी
इस दीवानगी का भी इख़्तिताम करता हूँ-
जिंदगी की गाड़ी रुक सी गयी है
न जाने कहाँ चला गया
कमबख्त ड्राइवर-
ये दिन यहीं रुक जाए
ये रात यहीं थम जाए
अब कोई चाहत नहीं दिल में
बस ज़िन्दगी यूँ ही गुजर जाए-
आज 'ख़ुदा' भी लगता
थोड़ा 'मेहरबान' है
बन गया शायद
मेरी मोहब्बत का 'निगेहबान' है
'पहलू' में बैठी हैं 'वो'
चल रहा उनकी नज़रों का कमाल है
मुझे देखने चुपके से उठती है..
नज़रें उनकी
पल में शर्म से नीची होकर
लेती 'जान' है
उनके 'लब'....मेरे लब
एक ही सुर में बेक़रार है
शायद करना चाहते हैं वो 'ख़ता'
जिसे दुनिया कहती 'इक़रार' है
अब और ना रुक पायेगा ये 'काफ़िर'
चिल्ला ही उठेगा
हाँ मुझे प्यार है..प्यार है..'प्यार है'
- साकेत गर्ग-
जो देखा प्रिये तुझे सजदे में उस
रब के आगे तो मैं भी तेरे
साथ झुक गया ।।
अरे इरादा तो था ऐसे मेरा तुझसे
बहुत दूर जाने का ...
मगर पता नहीं प्रिये तूने क्या दुआ
मांगा उस रब से जो मैं तेरे
पास रुक गया ।।-
तुम मेरी जिंदगी में आये और चले भी गए
जैसे स्टेशन पर कुछ देर रुक कर गाड़ी निकल जाती है
-
बात बस यहाँ आकर,
रुक जाती है कि?
हमारे दिल को भी,
चलाता तो दिमाग ही है।-