जो मुझसे मेरी
देह - री के पार मिल सको
तो आना मिलने
मैंने राह में अपनी रूह बिछाई है।
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राह एक मगर मंज़िल अलग थी या मंज़िल एक राहें अलग थी
दिखा जो मुझे उसे भी वही, नज़रिया एक फ़क़त निगाहें अलग थी-
राह चलते हुए, हर बार दुआ करता था,
जान निकली भी तो, बस एक निवाले के लिए ।-
यह जो मुहब्बत है इसमें रंज भी हैं
मसर्रत भी है,
यह जो मुहब्बत है...
बड़ी मुफ़्लिशी है पऱ इसमें बरक़त भी है
दूरी बहुत है चाँद से
पऱ उससे कुर्बत भी है,
यह जो मुहब्बत है...
इसमें रंज भी हैं मसर्रत भी है,
इक मैदान सा है पर्वत भी है
इक सीधी सी राह में.. करवट सी है,
क्या कहें.. के दिल को जिससे नफ़रत सी है
उसे पाने की कमबख़्त हसरत भी है,
यह जो मुहब्बत है.. इसमें रंज भी हैं
मसर्रत भी है...!-
रात की आंखों से, सुबह की उम्मीद में जागते हुए देखा है।
सुख की चाहत में, इस झूठे संसार में भागते हुए देखा है।।
परम सुख की चाह।
केवल प्रभु की राह।।-
तुम्हारा इंतज़ार करते करते.....
मगर तुम न लौटे
इन आँखों से उम्मीद की किरण
भी खत्म होने लगी
जिनमे कभी थी सपनो
की सेज सजी हुई ।।।
अब तो साँसे भी थमती
सी प्रतीत हुई ।।।
जो कभी तुम्हारी धड़कन
महसूस करती थी
जाने अब कब रुक जाए
तुम्हारी राह तकते तकते...
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आधा बचा था... सफ़र आधा हो गया था
पऱ उसका राह बदलने का इरादा हो गया था,
जबसे झूठी लगने लगी थी उसे मेरी चाँद तारों की बातें
वो अब मेरा नहीं है... इसका मुझे अंदाजा हो गया था,
हाँ... थोड़ी संकरी राह जरूर थी मुहब्बत की
पऱ वो कुछ हताश मुझसे ज़्यादा हो गया था,
अभी जीने की चाह तो... और थी मुझमें
पऱ तैयार मेरे ख़्वाबों का जनाज़ा हो गया था,
लोग पूछते हैं मैं अब भी क्यूँ तकता हूँ राह उसकी
कमबख़्त... क्या करूँ...
मेरा उससे उम्रभर साथ चलने का वादा हो गया था!!-
समय... रुदन के पल बदलेगा
के अश्रु नयन का जल बदलेगा,
माना आज ख़्वाबों में बहुत उमस है
निश्चित ही यह मौसम करवट कल बदलेगा,
यह यादों के काफ़िले हमें रास ना आये
दिल... अब रिश्तों के दल बदलेगा,
ज़िन्दगी ने फ़िर वोही प्रश्न किये हैं
पऱ हर सवाल का अब हल बदलेगा,
मन्दिर-मस्जिद बहुत हाथ फैलाये
काफ़िर अब क़िस्मत अपने बल बदलेगा,
बहुत दिनों से यूँ मौन खड़ा हूँ
पत्थर अब अपना स्थल बदलेगा!!-
मुश्किलें हैं सागर सी.. दूर- दूर तक पानी है
हमें तैरना आता नहीं.. पर पार करने की ठानी है,
दिल की कश्ती में सवार.. मोहः पराये हो गए
किरदार तो अपना है मग़र.. किसी औऱ की कहानी है,
इक़ कमरा घर का सजा रहता है.. मेहमानों के इंतजार में
हम ख़ुद की क़दर भूले से हैं.. औऱ गैरों की मेजबानी है,
इस अल्प सी ज़िन्दगी का.. संक्षिप्त में सार बस इतना है
गोदी से जो राह निकली थी.. वो कंधों से होके जानी है,
मुश्किलें हैं सागर सी.. दूर- दूर तक पानी है!!-