हाल यूँ है राष्ट्र प्रेम का रंग घोल भी नहीं सकते,
आस्तीन के साँपों की पोल खोल भी नहीं सकते।
हाँ यही है एकतरफा तुष्टिकरण का मतलब,
वो ग़लत कर सकते हैं हम बोल भी नहीं सकते।-
पर्वतों सा अविचल शोभित हूँ मैं
मौन शिखर का संदेश प्रबल हूँ,
'विश्व मन विजय' की आशा मुझमें
आर्यावर्त का विशाल हृदय हूँ,
'रंग भगवा' विजय पताका बनकर
निज मातृभूमि का शस्त्र त्रिशूल हूँ,
राष्ट्रवाद का प्रखर उद्घोषक हूँ मैं
मानव प्रेम की निर्मल जल धारा हूँ,
योगेश्वर की षोडश कलाएँ मुझमें
फिर भी नम्र-विनम्र और धीर हूँ l
Deepak Agar-
मैं कैसे यकीन करूँ अब, दिल्ली में बैठे ठेकेदारों पर,
दशकों बीत गए इन दलालों को, मेरे गाँव तक पहुँचने में।-
तानाशाही के विरुद्ध खड़ा
मैं लोकतंत्र का समर्थन करता हूं
साम्यवाद को मानने वाला
मैं आज अराजकता से डरता हूं
राजा कि वकालत ना कर
मैं सही-ग़लत में भी भेद करता हूं
किसी के प्रति पक्षपाती नही
मैं अपने ही किरदार में जीता हूं
सही फैसले का वाह वाही तो
मैं ग़लत कि आलोचना करता हूं
मेरे लिए तो संविधान ही बड़ा
मैं राष्ट्रवाद में विश्वास करता हूं-
कुछ गलतफहमियां थी शायद या तुमसे इश्क़ ज्यादा था।
तुम्हारें देशविरोधी चेहरे पर मैं अक्सर नक़ाब डालता था।-
राष्टवाद के नाम पर जो "सांप्रदायिकता"
फैलाई जा रही हमारे देश में,
यहीं "सांप्रदायिकता" एक दिन
हमारी "नागरिकता" को निगल जाएगी..!!!!-
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर
भ्रष्टाचारियों को भगाकर,
सत्ता में देशभक्त आ जाएं
आओ ऐसी कट्टरता अपनाए।
बेइमानो से देश बचाकर
पापियों को धूल चटाकर
भ्रष्टता को दूर भगाए
दुष्टों के प्रति कट्टरता अपनाए।
जातिवाद का भूत भगाकर
आडम्बर पाखंड हटाकर,
कंधे से कन्धा मिलाए
हम सब उदारता अपनाएं।
धर्मांधता कटुता मिटाकर
सबको अपने गले लगाकर,
सारे गिले-सिकवे भुलाए
आओ ऐसी कट्टरता अपनाए।
हम बदलेंगे देश बदलेगा
भारत नई तकदीर लिखेगा,
स्वर्ग से सुन्दर देश बनाए
आओ मिलकर देश बचाएं।
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जब एक सुर में सभी पंथ जय हिंद,
जय हिंदुस्तान के नारे लगाएँगें
उस दिन तब सच में हम हिन्दुस्तानी
कहलायेगें...।
ये पन्थानुयायी इस बात को नहीं
समझेंगे ..
ये तो बस सत्ता के लालच में हिन्दुस्तां
की अस्मिता को भंग करेंगे
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कब तक मातृ भूमि पे वीरो का रक्त यू बहे
कब तक युही माँ बेटो की शहादत को सहेगी,,,
क्या इस तरह वतन को अमन मिल भी पाएगा
क्या रोज रोज जवान अपने प्राण गवाएंगा,,,,
कब तक आँखे नाम रहेगी ताबूत के बक्सों में
ये कैसी मानवता हैं मेरे देश के वासी,,,
नही है मेरी मातृभूमि इतनी रक्त की प्यासी
कब तलक देशद्रोही इस धरा में श्वास लेते रहेंगे,,,,
छल से हमारे वीरों के प्राण लेते रहेंगे
नही है ये धरा इतने रक्त की प्यासी,,,,
कब तक तूम बमों से धरती माँ
के सीने को यूं ही छलनी करते रहोगे,,,,,
अब बस कर ओ कातिल ये धरा हिसाब करती हैं
सदासर्वदा से ये इंसाफ करती हैं,,,,,,
शहीदों की शहादत का इंसाफ भी होगा
तब तेरा एक भी कत्ल माफ् ना होगा,,,,
इस रक्त की धारा का तू दंड पायेगा
इस धरा पर ऐ कातिल तू श्वास लेना पाएगा,,,,
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