MITHILA PALKAR
Your long
Curly hair delights my day...
When I feel lonely
I watch your cute photos hours in a day...
I watched
A web series a few days ago...
I like your dimple.
when you're laughing in a crazy go...
I cannot
Express my feelings...
When I watch
Your lovely web series "Little Things"...
- Manish Gautam
-
नवोदयन
वाणिज्य संकाय ( कांशी हिन्दू विश्वविद्यालय )
उनके जंगलों को काटेंगे।
वो हमारे घरों के बगल नए घर बनाएंगे।।
फिर कुछ और पेड़ों को लगा कर।
उसकी जड़ें हमारे आशियानों तक पहुंचाएंगे।।
हम बहरा बन उन्हें अनसुना कर देंगे।
पर वो हर दीवार के कानों तक बात पहुंचाएंगे।।
हम कोयले के हर टूकडे़ को उनसे ले लेंगे।
वो जल,जंगल,जमीन के खातिर एक दिन मर जाएंगे।।
हम खुद को भविष्य बता कर।
एक दिन सब कुछ उनका उनसे छीनेंगे।।
बदले में जमीन का कुछ धुर देकर।
बच्चों को जंगल जैसी मां से अलग कर देंगे।।-
कहने को दूरियां बहुत होगी,
फासले मिटाने के बहाने है हजार।
किसी दिन सफर में टकराएंगे,
बेसब्र को बस उस दिन का है इंतजार।।
शाम भी देखकर ठहर जाएगा,
बस तैयार रहना बिताने को सफर।
इज़हार-ए-मोहब्बत हो जाएगा,
एक दफा ही सही लौट आओ मेरे शहर।।-
कभी-कभी लिखना,
प्यार के उस इजहार से आसान होता है,
जो हिचक तले रह जाता है।
जब कोई आस-पास सुनने वाला ना मिले,
और जज़्बात हलक तक ही सीमित हो
वो सभी कविताऐं और किस्से
जो किसी के प्रेम में एक तरफा लिखी गयी हो,
या किसी मजबूर कि टूटती हालात बयां करें।
कहानियों में दबे पड़े किसी किरदार
कि, आवाज बन उभरी हो।
या किसी हताश में हौसले भर्ती दो-चार पंक्तियां,
या फिर किसी के साथ बिताए सफ़र कि यादें
निश्चित ही मेरे मन को सुकून के कुछ छड़ देती है।-
कभी में उसका एकलौता सच था
आज बन बैठा झूठ का परिंदा हूँ।
कौन कब कहां कितना बेसब्र था
वो भी जिन्दा है, मैं भी जिन्दा हूँ।
कहानियों से निकले किस्सों का
बस किरदार बनकर रह गया हूँ।
तुम में ख़ुद को भी तलाशने में
कोई एक कसर सा रह गया हूँ।
चाहत थी कसर को पूरा करने कि
तो अब खुद को अकेला रखता हूँ।
अर्धनिर्मित जीवन में, मैं तेरे वक्त
का बस पहर बन कर रह गया हूँ।-
खिड़कियां
सफ़र जब ट्रेन से हो तो,
खिड़कियों का महत्व बढ़ जाता है।
कानों में हेड फोन्स से अजीत सिंह के गाने
और नजरों से ओझल होते छोटे-छोटे गांव,
मानो रफ़्तार से भागती जिंदगी को विराम दे रही हो।
गाने और दृश्य ह्रदय में जगह बना ही रहे होते हैं।
कि बगल से गुजरने वाली ट्रेन कि तेज हवाएं,
अचानक कुछ चुरा कर लेकर जा रही हो।
निगाहें जो बाहर टकटकी लगाए होती है।
वो कुछ सहम सी जाती है।
मन में चल रहे अनेक ख्यालों को निगल गयी हो।
कुछ छड़ तक ऐसा प्रतीत होना लाजिमी है।-
कभी-कभी कुछ किताबें दिल कि अज़ीज़ हो जाती है
शुरुआत कहीं से भी हो, अंत हमारी कहानी को बताती हैं
किन्हीं पन्नों में अपने के ना होने कि एहसास कराते हैं
किसी पंक्ति पर ज्यादा ठहराव से आंखों में आशु भर जाते है
कुछ तो अपने अंदर अलग खुशबू समाहित करती है
तो कुछ कि कहानियां ही एक अलग महक बिखेर देती है-
1.
बिना कुछ कहे हमारी कहानी का भी अंत होगा।
किताबों का बदल जाना, किसी अंजान से
हाथ मिलाना, कहा पता था ऐसे शुरुआत होगा।
2.
फिर किसी से ना मिलने वाला वो एहसास होगा।
हाथों में हाथ, कंधों पर सिर, नंगे पांव बैठे
नदी के किनारे ढलते आफताब का इंतजार होगा।
3.
हमें मालूम नही था कि ये पल इतना खास होगा।
झुकि उनकि निगाहें, आंशूओ से भरे आंख
और लफ़्ज़ों में हम से बिछड़ने का एतराज होगा।— % &-
उस तीन सौ ग्राम के दिल में
वो भी सैकड़ों बातों को छुपाया है
उन सर्द से भरी कुछ लम्हों में
वो खुद से खुद को खोता पाया है
उन जज़्बात से भरी बेड़ियो में
वो खुद को बंदिशों में ही पाया है
उस खामोशी से भरी नींद में
वो उलझनों को सुलझाते आया हैं-