Deepak Sharma   (दीपक 'महेश')
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"सत्यनिष्ठा"
Joined 14 June 2020


"सत्यनिष्ठा"
Joined 14 June 2020
4 DEC 2023 AT 15:15

दूसरों के अनुभव से सीखो,
अपने अनुभव से सीखने में
तो........उम्र गुजर जाएगी!

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16 NOV 2022 AT 10:57

एक स्त्री स्वयं कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो,
पुरुष के आश्रय में वह अधिक निर्भय होती है

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19 SEP 2022 AT 18:31

समय रहते,
खुद को आर्थिक रूप से इतना सशक्त बना लो की
बुढ़ापे में तुम्हें किसी चीज के लिए तरसना ना पड़े।

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18 MAR 2022 AT 11:44

धारा के विरुद्ध बहने का साहस किसी में नहीं,
ये बात आज के संगठित हिन्दू समाज के लिए अनन्त काल तक आत्मसात करने योग्य है क्योंकि हमारी एकता ने आज हमारे त्योहारों पर कुंठित ज्ञान देने वाले तथाकथित स्वघोषित बुद्धिजीवियों को घुटनों के बल ला दिया है
आज न तो कोई पानी बचाने का विज्ञापन दे रहा है न ही सदाचार का
सनातन एकता जयते🚩

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11 MAR 2022 AT 13:45

वैमनस्यता का बोझ लिए "जीवन बगिया कैसे चहकेगी?
फलती-फूलती आबादी उजाड़ने वालों, बोलो ऐसे कैसे जन्नत मिलेगी??

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20 FEB 2022 AT 12:29

प्रकृति 'मौन वक्ता' है
इसकी भाषा को केवल
'शुन्यभाव' होकर ही समझा जा सकता है— % &

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12 JAN 2022 AT 21:48

देखो-देखो ये महफिलें मेरी,
कर रही नायाब कहानी बयाँ है,
कौन कह रहा है अंधेरा घनघोर है ?
ये देखो.. मेरी रातें रंगीन और सवेरा जवां है

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11 JAN 2022 AT 23:49

1 जनवरी 2022 के दिन, मुझे नववर्ष की बधाई देने वाले कुल मिलाकर कुछ दो-चार ही लोग थे उन्हें मैं "बेचारे" ही कहूँगा क्योंकि
"जहाँ इतना बड़ा उलटफेर या यूँ कहें कि सकारात्मक परिणाम सोशल मीडिया जैसी व्यवस्था से देखने को मिला कि हम हिन्दू संगठित होकर गर्व से कह रहे हैं कि हमारा नववर्ष गुड़ी पड़वा (चैत्र नवरात्र) से है",
वहाँ ये बेचारे अभी तक स्वाभाविक परतन्त्रता से मुक्त ही नहीं हो पाए।
अरे भैया और कैसी क्रांति चाहिए आपको वैचारिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए(??)
आखिर इनका बोझ ये ही झेले हमें क्या लेना(¿)
परन्तु कम से कम आप तो..यह एक *सत्य* अपने होनहार बच्चों को अवश्य बताइयेगा कि ....चैत्र नवरात्र पर हमारी प्रकृति चहुँओर नवप्रस्फुटित होकर हमें ये अनुभव करवाती है कि जैसे आज से ही सब प्रारम्भ हो रहा हो और यही सृजन की प्रथम तिथि है जिसे हम पड़वा कहते हैं अर्थात "गुड़ी पड़वा"¡🙏🚩

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6 SEP 2021 AT 12:33

शिकायतों की गठरी सर पर लिए उम्र गुज़ार दी
मैंने पूछा ज़िंदगी कितनी जी ?
"वो" दो पल भी न गिनवा सके!

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27 JUN 2021 AT 14:34

में ...
मेरी दलीलें कभी सुनी ही न गईं!

देती रही गलत फ़ैसले "फ़ासलों" पर
बीती सच्चाई हमसे कही न गई!

कोई ग़ैर होता तो बात 'और' होती ज़नाब,
"ख़ुदी" से मुक़दमेबाज़ी हमसे जीती न गई!

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