प्रेम का अर्थ समझाया जग को,
जिससे दुनिया अनजानी।
निस्वार्थ प्रेम की अधूरी ही सही,
पर पूर्ण ये प्रेम कहानी।
कृष्ण की प्रेम बांसुरिया सुन,
भई वो प्रेम दीवानी,
जब-जब कान्हा मुरली बजाये,
दौड़ी आये राधा रानी।-
जग झूम रहा
जिसकी
मुरली की तान पर,
वो कान्हा तो बजाए धुन
सुनाए,सिर्फ,लाड़ली सरकार को
वृषभानु दुलारी सुध भूल गयी
सुन धुन मनोहारी मन हारी..!!
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राधे,
सोच रहा हूँ,,
किसी रोज बैठे होंगे
मैं और तुम किसी एकांत वन में..
.
मैं
निहार रहा होऊँगा
तुम्हारे मोर पंखी दुपट्टे को..
.
और
तुम डूबी हुई होगी
मेरी बाँसुरी की मधुर ध्वनि में
.
सहसा
कुछ सोचकर,
मैं छोड़ दूँगा तुम्हारी लटों पर
प्रेम में डूबी रंग बिरंगी उन्मुक्त तितलियों को!!-
वो तो हैं
कान्हा की प्यारी..
तनमन से उनपे वारी..
खोई रहती जो
बस कृष्ण नाम में..
भोली सी श्वेत श्याम सी..
कुछ सहमी सी भोर भाव सी..
ना कोई चाह ना कोई बंधन,
प्रेम उनका निश्छल पावन!
मोह उनका ऐसा
जो बांधे सूरज का भी तेज..
ना हैं मीरा, ना थी वो पटरानी
वो तो हैं हमारी लाडली राधा रानी..!!-
न आदि है,
न अंत इसका,
ये तो भाव,
अविरल है,
प्रेम को प्रेम,
ही जानिए,
जब तक यह,
निश्छल है।-
मेरी चेतनाओं में नव संचार कर दो।
जो गति अधूरी है उसे नया आयाम दे दो।
में नही चाहता हूँ कभी विमुख होना ।
मेरे को अपने चरणों का धाम दे दो।
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न जाने क्यों
एक-दूजे के लिए..हम,
कभी कुछ लिख ही न पाये !
.
क्योंकि जब भी हम
लिखने बैठे तो..
एक शब्द से अधिक,
लिख ही न पाए..
.
और उस एक शब्द में
उसने..मुझे "प्रेम" लिखा
और
मैंने उसे..मेरी "आत्मा"..♥️-