आओ कि ये रात, नींद के सफ़र पे जाने को है,
ज़िन्दगी फिर से तुम्हें बुलाने को है......
जिस्म मुसलसल करवटें बदलता है,
पर आंखों में जाने क्यों फाहे सा तैर जाता है,
पुतलियाँ दीवार पे टिकी,
अनाम यादों में ग़ुम हैं,
गोया, कुछ चेहरे, कुछ बातें
नींद के सफ़र में, बबूल जैसी हैं....
पांव धरते ही, इक चीख निकल जाती है।
कुछ रास्ते, कुछ मंज़िलें
क्यों कभी तय नहीं हो पाते। 💕
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