Ragini Sinha   (Ragini Sinha)
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Joined 18 August 2019


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Joined 18 August 2019
28 JUL 2020 AT 1:01

कविताएँ जैसे सदियों से बुला रहीं हैं मुझे
अक्सर ही मैं रातों को चौंक कर उठ जाती हूं
जैसे सिरहाने बैठा हो कोई सौ जन्मों से
और कह रहा हो
कि तुम मुझे भूल तो नहीं गई
तुम्हे याद है ना
तुमने मुझे पनघट पे गुनगुनाया था
धान की बालियों में मिलने को बुलाया था
कभी मुझे अपनी चोटी में गूथ कर इतराती
तो कभी पांव में पायल की तरह खनकाती
गांव, नदी पोखरे पीपल की छांव
और सत्ती माता मंदिर
जहां तुम मुझे गले लगाती

आज क्यों तुमने मुझे भूला दिया
चीनी नमक के डिब्बों में
बन्द कर दिया है। मुझे खोलो मुझे आज़ाद करो
मै तुम्हारी अभिव्यक्ति हूं
तुम्हारा आईना हूं तुम्हारी पहचान हूं
और कब तक भूली रहोगी तुम मुझे

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14 JUL 2020 AT 1:23

आप अपनी ज़िन्दगी में तरन्नुम चाहते हैं तो
कविताएँ लिखियेऔर पेड़ बनाइये।
जैसे ही आप पेड़ को महसूस करेंगे
गीली मिट्टी की तरह उसकी जड़ों से
जुड़ जाएंगे,

आप ज़िन्दगी को महसूस करना
सीख जाएंगे।

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14 JUL 2020 AT 0:48

हां, कुछ रातें कभी ग़ुज़रती नहीं,
बस रेत की तरह
मेरे और तुम्हारे दरमियाँ
फैल जाती हैं....
हां, कोई-कोई दर्द कभी कम नहीं होता
आंख के आंसुओं में
बस जम जाता है...

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14 JUL 2020 AT 0:29

हमने तुम्हारे प्यार को,
कुछ यूं किया तक़सीम
कुछ को वफ़ा,
किसी को एतबार,
किसी को इंतज़ार लिखा

अब उनकी वफ़ा देखिये
मेरे दिल अज़ीज़ दोस्त
कबूल नामे पे
दस्तख़त की जगह
जो लिख गये फ़रेब

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13 JUL 2020 AT 0:56

कुछ यादें वक्त के समन्दर से यूं भी टकराती हैं
कुछ सीपियां बहकर, किनारे तक आ जाती हैं,

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13 JUL 2020 AT 0:37

सुर्ख जोड़ा और
किसी का इंतज़ार....

मोहब्बत की रंगीनियों में
ये रंग आबाद रहे,
ये इंतज़ार आबाद रहे,


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13 JUL 2020 AT 0:23

बदलती रुतों में
तुम्हें ढूंढती हूं बहुत,
याद आता है तुम्हारा
बेसबब बदल जाना... ,
ऐसी ही किसी बदली रुत में
तुम मिलते मुझसे
बिना बदले हुए.....

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11 JUL 2020 AT 20:51

दिमाग की बत्ती नहीं जलती





दिमाग का बल्ब 💡 फ्यूज़
हो जाता है।

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25 JUN 2020 AT 21:27

दौर-ए-तन्हाई में तेरी याद बहुत आई थी
हमने उल्फ़त को निभाने की कसम खाई थी

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24 JUN 2020 AT 11:17

समेट लेना चाहती हूं अपना वक्त
पर तुम्हारी ख़्वाहिशों के चूहे
कुतर जाते हैं सबकुछ.......
मेरा मन, मेरा जोश
मेरी आकांक्षाएं, मेरी उपलब्धियां
मेरी चाहतें और मेरी ज़रूरतें...
सब बेहाल है, फटेहाल है।
पैबंद का हर रास्ता, मुमकिन नहीं होता दोस्त
ज़रूरतों के जिस्म पर ये रोज़ की रफू गिरी
किसी बोझ से कम नहीं,
तुम कहो,
मैं कब तक सूई तागे को थामे रहूँ?

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