रुक मत! तू आगे बढ़,
यह अंत नहीं!
इक पल की ही ये हताशा है,
मंजिल को भी तुझसे आशा है।
लोग तुझे भरमाएंगे ही,
भाग्य से तुझे डराएंगे ही,
तू बातों में क्यों? उलझा है,
भाग्य स्वयं कब? सुलझा है।
संघर्ष अभी कुछ! बाकी है,
तूने कीमत कितनी? आकी है,
घिसते हैं पाव जमीं पर जब,
जीवन ये तभी संवरता है।
उनको पाने की चाहत ऐसी,
जैसे भरा समंदर प्यासा है,
तू लहरों सा गिरता उठता,
तेरे संघर्षों ने तुझे तराशा है।
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