*छूट गए कई लोग,टूट गए कई रिश्ते,*
*मुस्कुराकर देख रहे मुझे ऊपर बैठे फरिश्ते।*
*निकल रहा है पल दर पल जिंदगी किसी आस में,*
*ज़माना ढूंढता है मुझे,और मैं मग्न हूं खुद की तलाश में।*
*हाथ धोकर पड़ा हूं खुद के पीछे, कमबख्त जान छूटता ही नही,*
*अंबुजा सीमेंट का बना है मेरे सब्र का बांध, टूटता ही नहीं।*
*_पढ़कर फेंक देते हैं लोग,चुटकुले की किताब सा हूं,_*
*_गम में नशे की तरह इस्तेमाल करते हैं हैं,महंगी शराब सा हूं।_*
*_ज़ख्म पर मलहम की तरह इस्तेमाल करते हैं दवा की तरह,_*
*_जी भर जाता है तो निकाल फेंकते हैं,बैलून के हवा की तरह।_*
*_आते हैं मेरे घर लूटने लूटने कुछ लुटेरे,गम का खजाना कोई लूटता ही नहीं,_*
*_अंबुजा सीमेंट का बना है मेरे सब्र का बांध टूटता ही नहीं।_*
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