*छूट गए कई लोग,टूट गए कई रिश्ते,*
*मुस्कुराकर देख रहे मुझे ऊपर बैठे फरिश्ते।*
*निकल रहा है पल दर पल जिंदगी किसी आस में,*
*ज़माना ढूंढता है मुझे,और मैं मग्न हूं खुद की तलाश में।*
*हाथ धोकर पड़ा हूं खुद के पीछे, कमबख्त जान छूटता ही नही,*
*अंबुजा सीमेंट का बना है मेरे सब्र का बांध, टूटता ही नहीं।*
*_पढ़कर फेंक देते हैं लोग,चुटकुले की किताब सा हूं,_*
*_गम में नशे की तरह इस्तेमाल करते हैं हैं,महंगी शराब सा हूं।_*
*_ज़ख्म पर मलहम की तरह इस्तेमाल करते हैं दवा की तरह,_*
*_जी भर जाता है तो निकाल फेंकते हैं,बैलून के हवा की तरह।_*
*_आते हैं मेरे घर लूटने लूटने कुछ लुटेरे,गम का खजाना कोई लूटता ही नहीं,_*
*_अंबुजा सीमेंट का बना है मेरे सब्र का बांध टूटता ही नहीं।_*-
*कड़कती धूप से आकर पेड़ की छांव में बैठा था,*
*मायूस किसानों को देखकर लगा किसी गाँव में बैठा था।*
*सौ बाल्टी से नहाने वाला शख्स,*
*सूखी नदी में नाँव में बैठा था।*-
*रुखसत होने का ग़म नहीं,*
*बस दीदार हो जाए।*
*फासले उम्र भर का हो ग़म नहीं,*
*फैसला आर पार हो जाए।*
*बीत जाए तमाम उम्र राहे मंज़िल में ग़म नहीं,*
*हाल-ए-दिल लब पे आए तो क्या पता प्यार हो जाए।*-
लाजवाब थे वो, कमाल करते थे,
इश्क़ मुझसे बेपनाह,बेहिसाब करते थे,
बाते कम, बस सवाल करते थे,
सवाल के बहाने तंग मुझे जनाब करते थे।
कहाँ गए,दिख नही रहे,एक जमाना बीत गया,
जो मेरी एक मुस्कुराहट पर लिख दिया किताब करते थे।-
कुछ इस कदर दूर हूँ दुनियाँ की भीड़ से,
कहीं खुद का जनाजा न उठाना पड़ जाए,
जहां जहां नज़र पड़ी,लिख दिया तुम्हारा नाम,
दिल,दिमाग,जिगर,नज़र तेरे नाम सुबहो शाम ।
बेफिक्र हूँ,मगर फिक्र है,मेरी फिक्र कौन करेगा उम्र भर?
यादों के सहारे ये सफर बिताना ना पड़ जाए,
लिखे हुए वे नाम मिटाना ना पड़ जाए,
कुछ इस कदर दूर हूँ दुनियाँ की भीड़ से,
कहीं खुद का जनाजा न उठाना पड़ जाए,
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मुझको मजनू खुदको लैला कहा करती थी,
खुद को छमिया मुझको छैला कहा करती थी,
भोलापन तो देखो मेरे महबूब का,
थी खुद किसी ग़ैर की तलाश में,
और मेरे दिल को मैला कहा करती थी।-
कहने को कह सकता हूँ कुछ कहो मुझसे,
लेकिन छोड़ो तुम कहकर भी क्या करोगी?
छोड़कर चला गया ना ?
दिल तोड़कर चला गया ना ?
मुझसे भी ज्यादा फिक्र करने वाला
मुंह मोड़कर चला गया ना ?
साथ रहने को कह सकता हूँ अब भी,
लेकिन छोड़ो तुम रहकर भी क्या करोगी ?
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