Ravindra kumar   (Ravindra kumar)
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Joined 3 November 2017


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Joined 3 November 2017
8 FEB AT 20:48

अपने यकीन पर शर्मिन्दा हूं
मुझे लगता था तुझे चाहूंगा और पा लूंगा मैं
तुझे समझता था अपना ही अक्स
तेरे साथ रूखी-सूखी ही सही मगर खा लूंगा मैं
मैंने हटा दिया था रेगिस्तान अपने दिल से
मेरा मानना था गुल खिलाऊंगा और तुझे रिझा लूंगा मैं
इस कदर दुनिया से आजिज़ आ गया हूं अब
कोई धोखा भी देगा तो खा लूंगा मैं

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21 DEC 2024 AT 22:53

वसीयत....!!!

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21 DEC 2024 AT 22:49

रिश्तों पर लगी जंग लगातार बढ़ती रही
सिलसिलेवार मोह की डोर कटती रही
बिछड़ा हुआ बच्चा हो गया हूं भरे पूरे परिवार में
बात ज़ख़्म सी नासूर थी रह रह कर चुभती रही

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21 DEC 2024 AT 22:41

जार ?
( नज़्म कैप्शन‌ में )

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21 DEC 2024 AT 22:30

ईब तो लगा ले अंदाज़े दुनिया की ढ़ाल
कदे बैठैगी धोरै तो बताऊंगा दिल का हाल

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21 DEC 2024 AT 22:27

मुझको बारी-बारी गंवा दिया उन लोगों ने
वही लोग जो मेरे पसंदीदा होते थे

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21 DEC 2024 AT 22:19

दुनिया करे चालाकियां ठीक है
मगर तुम लोग !
तुम तो मेरे अपने हो,
यार ! मत करो।

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21 DEC 2024 AT 22:11

तुम मेरे ज़िंदा होने का मज़मून हो
तुम सुकून, शिद्दत, राहत और जुनून हो !

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25 APR 2024 AT 23:22

मैंने खुशबूओं को जज़्ब करके रखा है
मैं जिस पर खुल जाता हूं महकने लगता हूं
मैं चुप रहता हूं खुले आसमान और घने जंगलों में
मेरी पसंदीदा शाख हो तो चहकने लगता हूं

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20 MAR 2024 AT 20:01

मैं टूट गया अंदर से लेकिन
मैंने लहज़े नही बदले अपने

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