पूछ तो लेते मुझसे मेरा रज़ा क्या है,
इश्क़ के मारे है इससे बड़ी सजा क्या है।-
अपनी इन निगाहों के, पलकों को गीरा लूं,
या इन्हें, तेरी निगाहों से मिला लूं।
बता अपनी रज़ा, किस अदा से, तुझे अपना बना लूं।।-
लोगों! मत पूछो मुझसे कि मेरी रज़ा क्या है
चलो आज बता ही दो
है अगर आदमी ख़ुदा, तो ख़ुदा क्या है-
दुआ, सलाम, दिल की रज़ा लिख दी,
कलम उठाई, दर्द बेवजह लिख दी,
आँखों से बहे कुछ कतरे मोहब्बत के,
नाम तेरे अपनी हर सुबह लिख दी !-
रश़्क घुला हर एक पैमाने में जब बेबाक इश्क का जिक्र हुआ
ख्वाहिशों पर तोहमत आप लगी , जब रज़ा वो हर इक की हुआ !!-
सफ़र तन्हा रहा अक्सर वफ़ा जब भी गई दिल से
मोहब्बत हो चली सबसे हया जब भी गई दिल से
ख़ुदा उससे हुआ राज़ी इबादत देख कर उसकी
इबादत भूल बैठा वो रज़ा जब भी गई दिल से
किसी को कौन समझेगा सभी में ख़ुद-परस्ती है
ख़ुदा को तुम भी समझोगे अना जब भी गई दिल से
मोहब्बत को कभी मुझसे शिकायत थी निभाने की
निभाना भूल बैठा मैं अदा जब भी गई दिल से
किसी से इश्क़ करता था निगाहों से कभी 'आरिफ़'
है दुश्मन भी तभी अपना दग़ा जब भी गई दिल से-
कोई सिरा भी इसका आता नहीं है हाथ
लंबी है आखिर यह रात किस कदर
भीगा नहीं है कुछ पर सूखा भी दिखे न कोई
बरसी है आज यह बरसात किस कदर
कोशिश लाख कर लूं समाता नहीं समाये
मिलते हैं गम क्यों अफरात इस कदर
वो सामने हों मेरे और देखें नहीं जो मुझको
क्यों दिल में उठ रहे हैं ये ख़यालात इस कदर-
रब से मांगी थी जो मैंने वो "दुआ" हो तुम...
जो पूरी होकर भी पूरी न हो सकी वो "रज़ा" हो तुम..
☺☺☺-
भूल जाऊँ तुम्हें ये मेरी रज़ा नहीं है
तुम्हारे इश्क़ में तड़पना...
ये खुदा की दी हुई सजा नहीं है-