हम एक क़िस्से से गुजरे तो फ़िर किरदार बनें, जब कुछ ना बन सकें तो उनके यार बनें, मैं डरता था जिन आँखों मे देखने से, औऱ वो बोले तुम इन आँखों प्यार ना देख सकें।
किताबों का इल्म नहीं हमें हमनें लफ़्ज़ों से प्यार किया है । अब वो ही लिखते है किस्सा हमारा हमने बस कलम पे ऐतबार किया है। लाइलाज़ हुए जो निशान-ए-जख्म हमारे चाय का हर घूट फूक-फूक के पिया है । गौरतलब है, वो मिलते भी नहीं सामने पर दीदार उनका जी भर के किया है। किताबों का इल्म नहीं हमें हमनें लफ़्ज़ों से प्यार किया है ।