Shweta Ranjan   (श्वेta रंjan)
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Joined 29 May 2020


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Joined 29 May 2020
1 AUG 2024 AT 10:22

इस बारिश का यूं बरस जाना
और चुपचाप कुछ न बताना
पानी से फिर पत्तों को भिगाना...
पहली बार तो नहीं है !!
किसी प्रेमिका का यूं सहम जाना
अंदर के तूफानों का अवाक हो जाना
यूं रिश्तों को इस कदर तड़पाना...
पहली बार तो नहीं है !!

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27 JAN 2022 AT 6:58

इन तकदीरों ने कलम मेरी रोक ली हैं
वरना हम भी शायर कमाल के थे...🙂— % &

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18 JUL 2020 AT 0:39

Persistent dejection
or intrusive stream,
Words letting down
In a melancholic freak...

Perception at its peak
Heard own poetic creed.
Even sleep can't help
Nor stirred up the deed!
But Never put thyself
In the depressive street!

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9 MAY 2021 AT 11:13

कुछ लिखने से तौबा खाए हुए है
ये कलम ना जाने क्या छुपाए हुए है ।

अधूरा ही रहेगा ये ख्वाहिशों का किस्सा
ये जो ज़िन्दगी के फूल मुरझाये हुए है ।

अब ज़हमत कौन उठाए फिर से ज़माने भर की
जब खुद की जान खुद से खौफ़ खाए हुए है ।

समेटे भी तो कैसे कोई उलझनों के भार को
आज हर एक शख्स खिसियाए हुए है...।

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7 FEB 2021 AT 23:03

सिमट जाते है सारे दायरे
रस्में तस्वीरों की बुनते है!
जो कागज़ पे उकेरे है हमने
वो बस उतना ही सुनते हैं!

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7 FEB 2021 AT 22:26

रास नहीं आया उसे यूँ
सूरज की तरफ मुड़ना
वो लड़की अंतर्मुखी थी
पर सूरजमुखी नहीं !
रास नहीं आए ये रंग गुलाबी उसे
वो लड़की शायद पत्तों की शौकीन थी!

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30 DEC 2020 AT 18:38

ख़यालात की आँधी को
बातों की आड़ मत देना
झूठा जो बतलाए कोई तुम्हें
तुम सच का प्रमाण मत देना...!

बहते आंसुओ को कभी
पलकों की आड़ मत देना
जज़्बात को यूँ बिखर जाने देना
उन्हें शब्दों का प्रमाण मत देना..!

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15 DEC 2020 AT 7:16

एक छोटा सा किस्सा
दरख़्वास्त बस इतनी थी,
मैंने कब चाहा फरिश्ता...!

कभी चाय पे बतियाते रहे
कभी ख़ामोशी से मुस्कुराते रहे
सुबह का अखबार भी
हम रात तक दोहराते रहे!

जिनसे मिल नहीं पाए कभी
सामाजिक दूरी बताते रहे
छीकें जो उनके सामने हम
वो अब भी सहानुभूति जताते रहे!

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10 DEC 2020 AT 8:29

बिना कुछ बोले भी बात होती है
किसने कहा है तुमसे कि
सिर्फ शोर में ही आवाज़ होती है
यूँ आया न करो
रोज़ सपने में हमारे
ज़माने को लगता है
हर रोज़ हमारी मुलाकात होती है...!

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30 NOV 2020 AT 11:20

हवाएं रुख बदल लेती हैं
जो बीत जाती हैं बहारें...!
मैं गुज़ारती हूँ ज़िन्दगी
उन हवाओं के ही सहारे...!
ये मौसम की बेरुखी है
या हवा के नापाक इशारे...!
असर हर लफ़्ज़ पे होने लगा
बयारें जो कभी हुए ना हमारे...!
अल्फाज़ ये सोच के ख़ामोश है
अब सर्द हवा को कौन पुकारे...!

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