अतीत
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ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है-
सोचता हूँ के काश...
जमीं पे यह सरहदों की बंदिश ना होती
यह सबका जहाँ होता.. यह सबका आसमां होता
किसी के भी मन में.. कोई रंजिश ना होती,
कोई धर्म ना होता.... बस मानवता ही एक कर्म होता
तो शायद ज़िन्दगी यूँ असमंजस में ना होती!-
व्यक्ति का धर्म तप, करुणा, क्षमा,
व्यक्ति की शोभा विनय भी, त्याग भी,
किंतु, उठता प्रश्न जब समुदाय का,
भूलना पड़ता हमें तप त्याग को।
त्याग तप करुणा क्षमा से भींग कर,
व्यक्ति का मन तो बली होता मगर,
हिंस्र पशु जब घेर लेते हैं उसे,
काम आता है बलिष्ठ शरीर ही-
युद्ध के बाद
अशोक हो जाना
उतना ही मुश्किल हैं,
जितना
युद्ध से पहले
बुद्ध हो जाना।— % &-
क्या लिखूं, कैसे लिखूं
कुछ समझ न आए
शब्द खो गए से लगते हैं
जज़वात सो गए से लगते हैं
ये कैसा दौर है
शोर ही शोर है
कहीं ढ़ह रहा कोई पुल
कहीं धमाकों का ज़ोर है
लहू के छींटों से रंगा
चीखों से सजा…..
ये कौन सा बाजार है
कुछ समझ न आये…..
राख के ढ़ेर पर बैठा
किसका बालक
वहां रो रहा
कोई यत्न करो
चुप करवाओ उसे…
जाग जाए न कहीं
पास ही ईमान सो रहा
तुम खड़े मुस्कुरा रहे
किसका चित्र बना रहे
कुछ समझ न आये….।।
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"युद्ध"
सर्वप्रथम व्यक्ति के मस्तिष्क में होता है
उसके बाद,
रणभूमि में,
जहां दोनों की सफलताएं शिद्दत से एक दूसरे को
असफल करने का प्रयास करती हैं...!
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युद्ध विरुद्ध का साज़ था
ये धन का कारोबार बना
अपने हथियार बेचने को
विध्वंसी रक्षित यार बना।-