मरती नहीं कुछ यादें,
उनका कत्ल करना पड़ता है !-
इस वक़्त में तुम्हारी
कमी पहले सी है
मेरे आँखों में ये नमीं
आज भी कुछ वैसी है
फर्क सिर्फ इतना है कि
इन होठों पर ये मुस्कान
उन बीते वक़्त की ख़ुशी
की है हा अब मुलाकातें
तो नहीं होती हमारी पर
आज भी इन बूंदों में तुम्हारी
छवि कुछ वैसी ही है...-
जिन लम्हों के तुम कभी हिस्सा हुआ करते थे
आज वो हर लम्हा एक किस्सा बन कर रह गया है-
यादों में संग हो हसीन पलों में संग हो
मेरे आँखों मे बसे तुम मेरी पलकों में बंद हो
हँसता हूँ जबभी तुम्ही मेरे होंठों पर सजी हो
जब रोता हूँ बिलख कर तुम मेरी अश्रुओं में बही हो
जग बहारों में घुम लूँ तुम मेरे संग संग उड़ी हो
हसीन वादी में जब होता हूँ तुम मेरे बाहों में लिपटी हो
घनघोर अँधियारे में तुम मेरे हाथों को पकड़ चली हो
दिन के उजालों सा तुम्हीं मेरे रूह में बसी हो
मेरे अकेलेपन में तुम मेरे संग संग रही हो
मेरे हर दर्द का मुझमें मरहम सा तुम बनी हो
जिधर भी देखूँ बस तुम वहीँ मुझे मिली हो
दिल के धड़कन सा मेरे हर धड़कन में तुम बसी हो
ज़िन्दा रहने की तुम एक वजह मेरी बनी हो
तुम मेरी जान बन कर मुझमें मेरी साँसों की तरह घुली हो-
बस यही तो मैं अक्सर किया करती हूँ।
तुझको अक्सर ही मैं लिख लिया करती हूँ।
जब कलम सताती है न तेरे इंतज़ार की ...
शब्द यादों के उसको दिया करती हूँ।
✍️राधा_राठौर♂-
मां के हाथ के पराठे और पिताजी के खर्राटें
मुझे आज भी याद आते हैं ,
जब-जब फेरता हूं अपनी उंगलियां मुस्कुराती तस्वीर पर
मैं अनाथ से
ज़िन्दा लाश बन जाता हूं |-
तेरे रूठ जाने से मेरी खुशी मॉन्न हो गई
कल तक जो मेरी थी अाज कौन हो गई
उसे अब फर्क नहीं पड़ता, मेरे होने ना होने से
उसका दिल नहीं तड़पता, मेरे रोने से दूर होने से
तेरी हर बात याद आती है, जो दिल को तड़पाती है
सो नहीं पाता एक पल भी वो रात भर जगाती है
अब से खुद मैं बिजी रहूंगा तेरी यादों से कहूंगा
मुझे अब चैन से जीने दे जो जख्म मिले हैं उनको सीने दे
आ गई वो तन्हाई वाली रात तड़पाएगी सारी रात
सो जाओ तुम रब तुझे हसीन सपने दे
आंसुओं की चादर ओढ़ ली मेंने
एक गहरी नींद में मुझे भी सोने दे-
सुनो...
कभी सोचा ..तुमने कि...
आखिर ..तुम लिखते ..क्यों हो..??
( पूरी कहानी अनुशीर्षक में पढ़े)
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