बहुत बातें करनी है ज़िन्दगी के काम काज में
हम इतने व्यस्त हो चुके थे कि
वक़्त ही हमसे अलग होता गया.....
जब मिलोगे फिर हम याद करेंगे उन पलों को...
जिन्हें याद करके आज भी हम उन पलों में खो जाते है
फिर तुम गले से लगाना मुझे जैसे पहली बार लगाया था
उस दिन बिन बादल बरसात हुई थी.....
पंक्षियों के चहचहाने की आवाज आने लगी.....
आसपास तितलियां ही तितलियां आ गई ...
सूरज केसरिया रंग का हो चुका था......
मानो हमारा मिलन कुदरत ने ही तय किया था.....
आज वो दुआ पूरी हुई जो हम दोनों ने मांगी थी....इतनी खुशी महसूस की आज हमने जैसे तीनो लोको ने मिलकर धरती लोक पर जश्न मनाया हो......
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उसने पूछा,
है कितना सुहाना मौसम,
क्या आती मेरी याद नही...
मैने कहा,
मेरा दिल धड़कनें लेता तेरे नाम की,
तेरी याद किसी मौसम की मोहताज़ नही!-
ये वक़्त भी गुज़र जाएगा,
ये दिन भी ढल जाएगा,
और ये मौसम भी बदल जाएगा,
नहीं बदलेगा तो ये दिल
जो सिर्फ तुम्हारे लिए धड़कता है।-
ये बारिश की बूंदें जब तेरी
जुल्फों को छूती .... उफ्फ्फ...
काश ! ये नजरें मेरी कहीं और होती ...
❣️❣️
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"घरौंदा इश्क का"
सुहाना सा ये मौसम भी, कुछ खास नहीं होता,
मीठी-मीठी इन हवाओं का, आभास नहीं होता।
ये दुनिया मुझे चाहे कितनी भी खुशियाँ दे दे,
पर उनके बिना कुछ भी एह्सास नहीं होता।
जमानें की इस भीड़ में, खुद को अकेला पाता हूँ
उनकी यादों का कारवाँ, जब मेरे पास नहीं होता।
हमारे उनके दरमियाँ, ये दुरियाँ रहती ही नहीं
गर वो धरती नहीं होतीं, मै आकाश नहीं होता
खुदा ने गर उन्हे, बनाया ना होता मेरे लिये
तो जीवन में कुछ ऐसा, मिठास नहीं होता ।
थम सा गया होता, मेरे जिन्दगी का ये सफ़र
गर उनकी साँसो से जुड़ा, मेरा साँस ना होता।
घरौंदा इश्क का कभी बनता नहीं "नवनीत"
दिल में मेरे अगर, उनका निवास नहीं होता।-
इस सर्द मौसम में
कई मर्ज निकलेंगे
यह तन्हाई,
बर्फ सी उदास यादें
औऱ यह ठंडी हवायें,
उफ़्फ़.., पुराने जख्मों में
फिऱ नये दर्द निकलेंगे..!-
ज़िंदगी की राहों में चलना मुश्किल है
ख़्वाब चुभते हैं पैरों में
मौसम की तरह लोग बदलते हैं
साथ भी छूटते हैं अपनों के
कभी सोचा ना था
किसी और की ज़िंदगी बन जाओगे तुम
हाँ, कोई वादा तो नहीं किया था तुमने
लेकिन, साथ ना देने का इरादा तो नहीं था तुम्हारा
यूँ ही अचानक कैसे आगे बढ़ गए तुम..?
मेरा साथ छोड़ के, कैसे उसका साथ देने लगे तुम..?
रिश्ते और जिम्मेदारियों को निभाते निभाते,
ख़्वाब चुभते हैं पैरों में
ज़िंदगी की राहों में चलना मुश्किल है..!-
मैं सावन का
आख़िरी बादल,
ख़ुद को समेटना
बिसर गया हूँ,
जबसे मौसम से
बिछुड़ गया हूँ,
देख..,
मैं कितना
बिख़र गया हूँ..!-