मोबाइल फोनों ने सब छीन ली सकूँन-ए जिंदगी
एक वक़्त था जब हक़ीक़त में दोस्त हुआ करते थे-
दिन खत्म होने को था
शाम धुंधलकों की सीढ़ियों से
नीचे उतर रही थी
मैं सूरज को डूबते हुए एकटक देख रही थी
दूर खेतों के उस पार सड़क पर
रोशनियां
कभी अकेले तो कभी जोड़े में गुजर रही थीं
घर लौटते हुए पंछी मुड़कर मुझे देख रहे थे
किन ख्यालों में खोयी हूँ सोच रहे थे
कोने में खड़ा खंभा भी मुझे घूर रहा था
शायद वो
मुझमें किसी को ढूंढ रहा था
अकेले नहीं थी यादों से ही घिरी थी
लौट जाऊं अब..सोच के उठ गयी थी
तभी मोबाईल फ़्लैश हुआ
तुम्हारा मैसेज था-
"हे ! क्या मैं लेट हो गया?😊"-
कुणी म्हणतात असं कुणी म्हणतात तसं
मोठा असो की छोटा साऱ्यांनाच लावलं पिसं
कधी कधी सारेच तुझा लटका राग करतात
तेवढ्याच प्रेमाने हळूवार जवळही घेतात
तू सोबत असता एकटेपणा जाणवत नाही
तुझ्याविना एक क्षणही रहावत नाही
किती अगाध आहे तुझे ज्ञानाचे भांडार
कुणास काय हवे ते करतोस सादर
कधी आनंदाची खळखळती ढगफुटी होते
कधी आसवांची नकळत भरती येते
तू जादूगार तू स्वच्छंद मनाचा आरसा
किती काही झालं तरी तू हवाहवासा
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शेजारी असूनसुध्दा
उरला ना थेट संवाद
काम धंदा सुचेना मुळी
लागला जर याचा नाद
म्हणतात आहे आता
माणसापेक्षाही स्मार्ट
व्यसनाने याच्या लागते
दिनचर्येची पुरती वाट
प्रत्येकजण आज म्हणतो
मला माझा प्रिय मोबाईल
लक्षात घ्याअतीवापराने
आयुष्याचं मातेर होईल
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अपने भी पराये होते जा रहे हैं,
WhatsApp अौर Facebook के दायरे में जी कर।
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कहाँ खो गया बचपन
न शोर है न शरारतें
हर बच्चा देख रहा है
टी .वि और मोबाईल
सारे खेल मोबाईल के
पता है उसे
हर लेवल से अगला लेवल
वो पार करना चाहता है
उसे नहीं पता कागज की नाव
कागज के जहाज
लुका छिपी
पंतंगो के पीछे भागना
दोस्तों के बचपन की मस्ती ।-
इक आस सी बंधती है
जब भी तुम्हें ऑनलाइन देखता हूँ
देर तक टकटकी बंधी रहती है स्क्रीन पर
भूले से गर मैं कुछ लिख देता हूँ
'अनसीन' रहता है मेसेज कई दिनों तक
'ब्लू टिक' दिखने पर तसल्ली होती है
शायद तुमने पढ़ लिया हो सन्देश मेरा
अब तो कुछ लिखने में भी डर लगता है
पिछली दफ़ा जब पूछ बैठा था,'कैसी हो'
तुरन्त ऑफ़लाइन हो गयी थी तुम
बेरुख़ी है तो ब्लॉक क्यों नहीं कर देती
मिटा देना चाहिए हर उन हर्फ़ों को जो ग़लत हों
बेवजह आस का दामन पकड़े
ज़ोर देता रहूँ अपनी इन आंखों पर
आख़िर कबतक...!!-