Mis MPC   (Mis MPC)
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Joined 2 April 2019


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9 JUL AT 11:14

जाता हुआ आषाढ़
देखता है मुझे अंतिम बार मुड़कर

उसकी भीगी अलकों के छोरों पर
रह जाती है दृष्टि ठहरकर
सोचती हूं रख दूं अधर आगे बढ़कर

मगर वो
जाते हुए रख जाता है सावन
मेरे कपोलों पर

विरह की बेला है
दामिनी दमक रही है
हृदय में बादल बरस रहे हैं उमड़-घुमड़ कर

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1 JUN AT 13:20

मैंने भूलना चाहा तू याद आता रहा
मेरे तसव्वुर में आकर मुस्कुराता रहा

किससे कहें दिल में जो लगी है मेरी
महज ख्याल नहीं जो आता-जाता रहा

वैसै तो हो चुके हैं हम ख़ामोश बहुत
मगर कोई अंदर ही अंदर चिल्लाता रहा

मोहब्बत करके मैंने बड़ी गलती करदी
हर कोई आया मुझे ये समझाता रहा

तू ने कुछ किया है कि नहीं तू ही जान
मेरे दिल को वफ़ा निभाना था निभाता रहा

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26 MAY AT 19:45

सांझ तले तुम आ मिलते तो अच्छा होता
प्यार के दिये जल उठते तो अच्छा होता

नैनों ने तुम्हें कहां कहां नहीं तलाशा होगा
तुम भी मुझे तलाश लेते तो अच्छा होता

तुम्हारा नाम रटती रहती हैं धड़कनें मेरी
तुम सांसों का मंत्र न होते तो अच्छा होता

तुम चाँद थे मैं झील थी और गहराई भी थी
मेरे वजूद में यूं न उतरते तो अच्छा होता

तुम दूर से इस तरह मुझे तसल्ली न दो
अबकि दूरियां मिटा देते तो अच्छा होता

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18 MAY AT 13:39

इस तरह ख़्वाबों में न आया जाया कर
याद बनकर न दिल को मेरे सताया कर

उतर आती है रुख़सारों पर मेरे लाली
एकटक नज़रें न मेरे चेहरे पर टिकाया कर

तेरे पीछे तेरी ख़लिश बेचैन कर देती है
मेरा चैन-ओ-सुकून अपने संग न लेजाया कर

तेरे बाजुओं में खुद को महफूज़ पाते हैं
कभी बेवजह ही मुझे गले से लगाया कर

शबनमी सी हवा हो और हो ढेर सी बातें
कभी मैं कुछ कहूंगी कभी तू कुछ बताया कर

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17 MAY AT 17:31

मुसाफ़िर दुनिया का क्या है धुन में चलती रहती है
कुछ जिंदगियां मगर जिंदान में ही ढलती रहती हैं

न मौसम रंगीन रहता है न रंगीनियां हसीन रहती हैं
वक्त की घड़ियां कुछ ऐसे पैरहन बदलती रहती हैं

क्या तुमने कभी हसरतों को खुदकुशी करते देखा है
वही जो दिल के आंगन में दिनभर मचलती रहती हैं

अरसे बाद मुझे देखोगे तो तुम भी पहचान न पाओगे
वो कहते हैं न आखिर किस्मत सबकी बदलती रहती है

हमेशा खुद को खुश रखना ही चुनना मेरे दोस्तों
दिल और दिमाग की लड़ाई तो यूं ही चलती रहती है

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13 MAY AT 19:58

यह किसकी तलाश जारी है?
कि रातें शून्य और दिन भारी हैं
किसका चित्र है जो अस्पष्ट अधूरा है
इस समय के उस पार अवचेतन में पूरा है
मन के गलियारे सजे हैं
बैरन छांव से लिप्त-लिप्त
तिस पर फिरती हूं मैं
होकर विक्षिप्त-विक्षिप्त
अस्तित्व अस्थिर मेरा अपसारी है
यह किसकी तलाश जारी है?
वो संयम संतुष्टि के सोलह आने
खर्च हुए अकुलाने में
मैं सुस्ताऊं तो कहां सुस्ताऊं
कोई वृक्ष नहीं वीराने में
अब तो केवल परछाई ही है जिससे अपनी यारी है
यह किसकी तलाश जारी है?

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27 APR AT 19:31

समझ नहीं आता क्या कर रहे हैं
जी रहे हैं इश्क़ में या हम मर रहे हैं

उसके सिवा कुछ और सुहाता नहीं है
ज़ालिम के बड़े ज़ालिम असर रहे हैं

तमाम तलाश उस पर ही आ के ठहरती है
जिस सुकून के लिए फिरते दरबदर रहे हैं

फड़फड़ाती बेचैनियों को ये कहके सुलाते हैं
कि 'वो' भी किसी मजबूरी से गुजर रहे हैं

इश्क़ में क्या हासिल है क्या कामिल न पूछो
कुछ आशिक़ों के अतरंगे मुकद्दर रहे हैं

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15 APR AT 20:31

भटककर वही आती हूं
तुझे अपना घर पाती हूं
ये कोई प्यास है
या सुकूं की तलाश
कि तुझे ही पुकारा
जब-जब खुदको तन्हा पाती हूं
कैसी कश्मकश है ये
कि तू है भी और नहीं भी
अपने इस भरम को आहिस्ता गले लगाती हूं
तुम्हारी खनकती हंसी
और वो अनकही बातें
मेरे हिस्से आई जो चंद मुलाकातें
दिल के आशियाने में रोज़ सजाती हूं
हवाओं को नामाबर करके
भेजी है क़ैफ़ियत
कि तेरे मुस्काते ही मिल जाए मुझे खैरियत
इस उम्मीद में तुझे हाल-ए-दिल सुनाती हूं

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18 MAR AT 19:24

प्रिय,

हर्फ दर हर्फ पिरोया है
पलकों से ज़रा भिगोया है
छिड़का है इतर इश्क़ का ऐसे
मेरे ख़त में तुझे संजोया है
पढ़कर तुम मुस्काओगे
ठिठकोगे ज़रा रूक जाओगे
बेचैन होंगी धड़कनें तुम्हारी
जब करीब मुझे न पाओगे
इस सफ्हे में खुदको भरकर
लिखा है मैंने सबसे छुपकर
कि लब से छुओगे जब-जब अल्फ़ाज़
पाओगे मुझको बेहद पास

तुम्हारी...✍️

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2 MAR AT 13:59

मेरे दिल के भीतर एक ऐसा कमरा है
जहां मैं हूं,तन्हाई है और सिर्फ अंधेरा है

वो पुलिंदे जला दिए कि कुछ तो रौशनी हो
जिनपर लिखा था कि क्या-क्या गुजरा है

वक्त तो अपनी रफ़्तार से चलता रहा
उंगली उठी मुझपे कि तू अबतक ठहरा है

हालातों में भी सलामती देखकर हैरां न होना
वो तो माँ की दुआओं का असर गहरा है

क्या खूब कहा था किसी शायर ने हौसले पर
जुड़ता है तो नया बनता है,जो टूटकर बिखरा है

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