Mis MPC   (Mis MPC)
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Joined 2 April 2019


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27 APR AT 19:31

समझ नहीं आता क्या कर रहे हैं
जी रहे हैं इश्क़ में या हम मर रहे हैं

उसके सिवा कुछ और सुहाता नहीं है
ज़ालिम के बड़े ज़ालिम असर रहे हैं

तमाम तलाश उस पर ही आ के ठहरती है
जिस सुकून के लिए फिरते दरबदर रहे हैं

फड़फड़ाती बेचैनियों को ये कहके सुलाते हैं
कि 'वो' भी किसी मजबूरी से गुजर रहे हैं

इश्क़ में क्या हासिल है क्या कामिल न पूछो
कुछ आशिक़ों के अतरंगे मुकद्दर रहे हैं

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15 APR AT 20:31

भटककर वही आती हूं
तुझे अपना घर पाती हूं
ये कोई प्यास है
या सुकूं की तलाश
कि तुझे ही पुकारा
जब-जब खुदको तन्हा पाती हूं
कैसी कश्मकश है ये
कि तू है भी और नहीं भी
अपने इस भरम को आहिस्ता गले लगाती हूं
तुम्हारी खनकती हंसी
और वो अनकही बातें
मेरे हिस्से आई जो चंद मुलाकातें
दिल के आशियाने में रोज़ सजाती हूं
हवाओं को नामाबर करके
भेजी है क़ैफ़ियत
कि तेरे मुस्काते ही मिल जाए मुझे खैरियत
इस उम्मीद में तुझे हाल-ए-दिल सुनाती हूं

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18 MAR AT 19:24

प्रिय,

हर्फ दर हर्फ पिरोया है
पलकों से ज़रा भिगोया है
छिड़का है इतर इश्क़ का ऐसे
मेरे ख़त में तुझे संजोया है
पढ़कर तुम मुस्काओगे
ठिठकोगे ज़रा रूक जाओगे
बेचैन होंगी धड़कनें तुम्हारी
जब करीब मुझे न पाओगे
इस सफ्हे में खुदको भरकर
लिखा है मैंने सबसे छुपकर
कि लब से छुओगे जब-जब अल्फ़ाज़
पाओगे मुझको बेहद पास

तुम्हारी...✍️

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2 MAR AT 13:59

मेरे दिल के भीतर एक ऐसा कमरा है
जहां मैं हूं,तन्हाई है और सिर्फ अंधेरा है

वो पुलिंदे जला दिए कि कुछ तो रौशनी हो
जिनपर लिखा था कि क्या-क्या गुजरा है

वक्त तो अपनी रफ़्तार से चलता रहा
उंगली उठी मुझपे कि तू अबतक ठहरा है

हालातों में भी सलामती देखकर हैरां न होना
वो तो माँ की दुआओं का असर गहरा है

क्या खूब कहा था किसी शायर ने हौसले पर
जुड़ता है तो नया बनता है,जो टूटकर बिखरा है

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1 MAR AT 19:35

कतरा कतरा कहता है
कोई तो रग में बहता है

मैंने नये सिरे से सोचा
मेरा उसका अनोखा रिश्ता है

सबकुछ कह देने के बाद भी
कुछ न कुछ अधूरा रहता है

जहां में सारे ग़म के मारे
मगर प्यार में दिल सब चलता है

जो भी करना सोचके करना
चप्पे-चप्पे में रब रहता है

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27 FEB AT 11:02

तुमसे दूर होकर भी तेरा हूं
तू है आफताब तो मैं सवेरा हूं

रहते हो यार तुम कुछ मुझमें यूं
मानो तेरे‌ दिन-रैन का बसेरा हूं

मेरे वजूद में तेरा अक्स घुला है ऐसे
मुझे नहीं लगता कि अब मेरा हूं

चिरागों के हक़ में नहीं था कि जले
तेरे रूखसत के बाद सिर्फ अंधेरा हूं

के सुपुर्द है तुझे मेरा हर फिक्र हर सुकूं
तेरे ताब पे मैं आब तपिश पे छांह घनेरा हूं

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14 FEB AT 10:44

मेरे शहर की भीड़
मेरे मन के सन्नाटे को नहीं पाती चीर
सैकड़ों चेहरे चेहरों पे अजनबीयत
हर चेहरा गैर
फिर भी एक चेहरे को
ढूंढते रहने की कोशिश नाकाम
जैसे नज़रों को दूसरा और कोई न हो काम
एक दिन भी गुजरता नहीं
तेरे खयालों के बगैर
तेरे कोरे वादे
मेरे मासूम मंसूबे तुझे चाहते रहने के पक्के इरादे
को कर देते हैं पल में ढेर
नजरें फेर
मंदिर के जीने पर
बैठे हैं सिर झुकाए कुछ दरकता हुआ लिए सीने पर
के डुबा दो या उबार दो इस इश्क़ से
ऐ खुदा तुम ही देर सबेर

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13 FEB AT 11:18

प्यार को प्यार करने,वही खता बार-बार करने
लौट आए हैं हम उसी जगह,जा चुके का इंतजार करने

आंधियां अब भी चलती हैं
पत्ते अब भी झड़ते हैं
मेरी सदाओं के परिंदे
बेरंग लौट पड़ते हैं
उठ खड़ा हुआ है मन फिर उन्हें तैयार करने
प्यार को प्यार करने

सुबह से शब तलक का
सफ़र जारी रहता है
हर शय में किसी शय को ढूंढना भी
इक बीमारी लगता है
किसी रस्ते किसी मोड़ पर,निगाहें उससे चार करने
प्यार को प्यार करने

राख हो चुका है सब
मगर शरर कहीं जल रही
अधमरी सी कोई आरज़ू
कब्र तले पल रही
उसकी प्यासी रूह पर,इश्क़ की फुहार करने

प्यार को प्यार करने,वही खता बार-बार करने
लौट आए हैं हम उसी जगह,जा चुके का इंतजार करने

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5 FEB AT 12:05

जरूरी न होकर भी तू इतना जरूरी क्यों है
ऐ इश्क़ तुझे निभाते रहना मजबूरी क्यों है

करीब हैं इतने कि इक दूजे में बसते हैं
हैरत है कि दो दिलों में आखिर दूरी क्यों है

गुम हूं गुमसुम हूं गुमनाम हूं मैं हर जगह
तेरा खयाल इतना मुझपर सुरूरी क्यों है

दिन हो गये हैं बदरंग और रातें काली खाली
मगर हर शाम तेरी यादों से सिंदूरी क्यों है

हर इश्क़ की फितरत है कामिल ही होना
न सोचना कभी कि कहानी अधूरी क्यों है

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29 JAN AT 12:39

दिल पर क्या गुज़र रही कैसे बताऊं मैं
थोड़ा सा उजाला मिले तो खिल जाऊं मैं

कभी भी मुझसे ऐसा होता नहीं अमूमन
कि उसका जिक्र हो और न मुस्कुराऊं मैं

क्या खूब शख्सियत का मालिक था यारों
मिला तो लगा इस शख्स पे मर जाऊं मैं

ये सोचकर कि ताब-ए-इश्क़ सलामत रहे
तिनका-तिनका करके खुद को जलाऊं मैं

इस उम्मीद में जी रहे कि कभी तो वो आए
पहलू में बैठे तो हाल-ए-दिल सुनाऊं मैं

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