तिरे हाथों को चूमती हिना से जलन है मुझे,
इस बद-ज़नी में मेरा रंग इससे गहरा हो चला है ।-
प्रेमिकाओं के हाथ की मेहंदी
केवल सुंदर आकृतियाँ नहीं
जिन में छुपा है नाम
उनके प्रेमी का
अपितु, वास्तव में है
प्रेम का 'अनुबंध'-
दुआं में आज फिर उसको 'कुबूल' होना था
लगा के हाथ मे 'मेहंदी' सिसक के रोना था-
गैरों की नजरों से खुद बचाती रही हिना लगे हाथों को,
पहले मुझे दिखाना चाही जो नाम लिखा था मेहंदी का!
हया से सुर्ख रुख़सार थे, जो हिना के से खुशरंग थे,
खोल हथेली जब मुझे दिखाया, रंग गाढ़ा मेहंदी का!
रंग फिज़ा का बदला बदला, सूरज क्यों छिपने लगा,
शाम का सूरज शर्माया जब हाथ देखा तेरी मेहदी का!
सुर्ख लब शोले बने जब शब-ए-वस्ल का तकाजा से,
लब लगे दहकने जब लबों पर हाथ था मेहंदी का!
चाल कुछ बदली बदली सी, कदम बहकते जाते क्यों,
पायल भी बहक गई जब साथ मिला उसे मेहंदी का!
कुछ ख़्वाहिश कुछ जज्बात कुछ अनकही कहानी है,
वफ़ा उसने यूँ जाहिर की हाथ रचा कर मेंहदी का!
एक निशानी का मुंतज़िर मैं, जिसका 'राज' हकदार है,
जब देगी कागज़ पे निशानी छाप हाथ का मेहंदी का!
_राज सोनी-
मेरे नाम की मेहंदी लगाए बैठी है,
लगता है मुझसे इश्क़ लड़ाए बैठी है...
मेरी निशानी माथे पर सजाए बैठी है,
लगता है मुझसे प्यार जताए बैठी है...
मेरे बंधन को गले मे बांधे बैठी है,
लगता है मुझसे दिल हारे बैठी है...
मेरी बलाएँ आंखों में धर बैठी है,
लगता है मुझसे मोहब्बत कर बैठी है...
मेरे रंग में लाल रंग ओढ़े बैठी है,
लगता है मुझसे उल्फ़त जोड़े बैठी है...-
महक जाऊं तेरी जिंदगी के हर खुशनुमा लम्हे में,
काश, मैं तेरे हाथों में मेहंदी सा रचा-बसा होता!
धड़क जाता मेरा दिल तेरे आने की आहट से ही,
काश, मैं तेरे पैरों में पायल की सी झंकार होता!
खनकता रहता मैं तेरे दिल मे हर पल हर लम्हा,
काश, बन के चूड़ियाँ मैं, तेरी कलाई में होता!
चमकता मैं चाँद की तरह अमावस की रात में भी,
काश, बन के काजल तेरी आँखों मे समाया होता!
खुशबू की तरह बिखर जाऊं तेरी हर मुस्कुराहट में,
काश, बन के गजरा मैं, तेरे बालों में इतराया होता!
बन के सूरज दमकता मैं ओज सा तेरे तन-मन मे,
काश, मैं तेरे माथे की सुर्ख दमकती बिंदी होता!
बना लूँ तुमको जन्म जन्मांतर का जीवनसाथी,
काश, मैं तेरी मांग का अमर सुहाग सिंदूर होता!
__राज सोनी-
इन हाथों में मेहन्दी लगायें बैठें हो,
सच-सच बताओं किस-किसका नाम छुपायें बैठें हो..!-
ये जी हांथों मे लाल रंग
सजाये हुएँ है
ना जाने कितनो के खून
बहायें हुए हैं
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मेहरबानी होगी आपकी मुस्कान दिख जाए
चेहरे पर सजे आपके , पैगाम दिख जाए
पर्दो में , न छिपाओ आंखों का तुम काजल
काश के मेहंदी में तुम्हारी ,हमारा नाम दिख जाए ।-
तेरे हाथों की मेंहदी की वो महक
तेरी बातों में वो कशिश और चहक
आज भी याद हैं....
पहली मुलाकात का ख़ुमार
आज भी आबाद हैं......
©कुँवर की कलम से...✍
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