जो कहते हैं की किसी के छोड़ जाने से कोई नही मरता
तो में उनसे कहना चाहती हूं कि
मर जाना ही सिर्फ जान निकल जाना ही नहीं होता
एहसास का खत्म हो जाना,मुस्कुराहते भुल जाना,
ज़िन्दगी बेरंग सा लगना,हसने से डर लगना,
तन्हाईयो का मुक्कदर बन जाना,
क्या ये सब मरने के बराबर नही है??
जान निकाल जाए तो दर्द से जान छूटता है
मगर जीते जी मरना बहुत तकलीफ देता है
😢😢
सांसे तो चलती है मगर जान बाकी रहती है
ज़िस्म भी होता है मगर ना ज़िन्दगी होती है और
ना जिंदा रहने की तम्मना😔
सिर्फ ज़िन्दगी गुजारी जाती है
ज़िन्दगी जी नही होती🤐
क्या ये वाली मौत जान निकल जाने वाली मौत से
ज्यादा तकलीफ वाली नही नही होती??
क्या इस तरह जिय जाने को मौत नही कहा जा सकता??
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