मुझे लिखना कभी नहीं आया जो भी लिखा उसके लिए लिखा.. या फिर शायद उसे ही लिखा.
उसके पहले कभी प्रेम का अर्थ समझ नही सकीं और उसके बाद कभी
समझना नही चाहा.
लोगों के लिए प्रेम के अलग अलग अर्थ होते होंगे..
मैंने प्रेम को या तो इंतज़ार के रूप में जाना या फिर विरह के.
और ये दोनों ही जब एक साथ किसी की किस्मत में आ जाएँ तो शायद इंसान के सब् की परीक्षा शुरू होती है.
जब तक मुझे उसका इंतज़ार था उम्मीद की झूठी दिलासा खुद को देती रहती थी फिर इंतज़ार खत्म तो नहीं हुआ पर विरह में तब्दील जरूर हो गया..
और इंतज़ार तक तो फिर भी ठीक रहता है कम से कम हमें उस एक शरख्स के वापस लौट आने की उम्मीद तो होती है
पर विरह में तो वो एक उम्मीद भी खत्म हो चुकी होती है..फिर विरह में तपता हुआ इंसान निखर तो जरूर जाता है.. विरह की आग होती ही ऐसी है..
खैर.. चाहे जो भी हो ये इुंतज़ार और विरह देते तो केवल दुरख ही है..
और इस दुख की दुनिया में कोई दवा नहीं बनी..
दुनिया में शारिरिक पीड़ा की हजारों दवाईयँ बनीं. पर मानसिक पीड़ा की एक भी नहीं... शायद जो कष्ट लोगों को नज़र आ गया उसकी
या फिर इतना समय किसी के पास रहा ही ना हो कि किसी के मन की
पीडा को समझ सके...-
Kabhi kisi ke haalaton ka faida mat
Uthana
Bus sochana or gaur krna uske haalat
Par Ki agar uski jagah mai hota to
Kya hota-
अपने जज्बातों को शब्दों में पिरोने की
कोशिश करती हूं,
लेखक तो नही हूं पर हाँ लिखने का शौक
जरूर रखती हूं।-
ना अच्छी किस्मत पर यकीन रहा,
ना सच्चे प्यार पर।
ना अच्छे लोगो पर यकीन रहा,
ना किसी पत्थर के भगवान पर।
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मुद्देते गुजर गयी
हिसाब नहीं किया,
न जाने अब
किसके कितने रह गए है हम।-
किसी ने सच कहा था,
बाते भूल जाती हैं,
यादे याद आती हैं।
अगर कोई बीता वक़्त वापस
आने का रास्ता होता तो,
हम सब उसी रास्ते पर खड़े होते।।-
Pata he Nahi Chalta ki yaha apna kon hai,
Agar sab sath hai to Fir badla kon hai,
Jaane wale to chale Jaate hai,
Farak isse Padhta hai ki wapas Palatta kon hai,
Kiss kayalo mein Ghuzar Jati hai Sham meri,
Samaj nahi aata dimag mein chalta kon hai,
Janna ho ki tumhara bhi hai kya koi,
To ye dekhna ki tumhari aankhe Padhta kon hai,
Tekleef ka dusra naam hai zindagi,
Bina uske yaha jee raha kon hai
Har bar ye Zaruri nahi ki tum Samjho sabko,
Ab ye samjho ki tumhe Zaruri Samjta koin hai...!!
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काश 'हम रोक सकते थे अपने साथ होने वाले धोख़े को लेकिन हमने विश्वास करना बेहतर समझा। हम सच जानते थे, लेकिन हमने झूठ को सच मानना बेहतर समझझा। हमारी आत्मा हमें सही रास्ता
दिखाने की कोशिश करती रही, लेकिन हमने सही को गलत समझना बेहतर समझा हमने खुद़ को हर उस गलती की सज़ा देनी चाहि, जो हमने की ही नही। ख़ुद को माफ़ नही किया लेकिन जीन लोगों ने हमारे साथ गलत किया उन्हें माफ़ करना बेहतर समझा। सब कुछ ठीक करने की कोशिश , हमने किस्मत से बग़ावत करना ठीक समझा, जिसे बद़लना हमारे बस में नही होता।।-
Aye Zindagi Itni takleef mat de...
Abb himmat nahi hai mujhme schne ki..
Zindagi ke har mod par khud ko akela paaya hai...
Jab Jaroorat Logon ki padi tab koi sath nibhane wala nahi tha...
Sabko samjhne ki Kaabiliyal Rakhti Hun Magar aksar mujhe samjhne wala koi nahi mila...
Takleef holi hai har ro...
Aksar akele mein jaakr rooya karti hun...
Har roz sirf ek ummmed mein rahti hun ki aaj kisi se koi mmed nahi karna...
Zindagi mein bas khudko larte dekha hai mainc... Kabhi khudse toh kabhi halaat sc...
Zindagi mein bhut log hain mere magar koi samjhne wala aajtak nahi mila...
Thak gayi hun sabse larte larte... Ab toh main khud ke liye bhi bojh si hogyi hun...
Aye Zindagi Abb Bas Kar...
Abb Aur Sehne Ki Himmal Nahi Hai Mujhme...!!-