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जो शिव थाम मुझे तुम लेते...
मेरे सारे तम मिट जाते..
जीवन सूत्र मै भी पा लेती..
अंतस के ताप धूल जाते..
गंगा सी अविरल बह पाती..
धूप छाँव मै सब सह जाती..
हर पीडा को भूल धरा पे..
नवजीवन की रचना करती ..
सहनशीलता सीख के तुमसे..
धरती का श्रृंगार मै करती..
गरल सभी सुधा बन जाता...
मन जीवन संतृप्त हो जाते..
जो शिव थाम मुझे तुम लेते।
#महाशिवरात्री-
जब मृत्यु निकट खड़ी होगी
और खोला जाएगा
कर्मों का बहीखाता,
होगा हिसाब
शेष बचे कर्मों का
तब केवल "धर्म" ही होगा
मेरा
एकमात्र "सहचर"-
तीन लोक बैठे थे रथ में, कर्ण ने हिला दिया...
मन ही मन में सोचे कृष्णा, तूने रण जीता दिया..-
My most awaited next poetry project
इन्द्र से धनंजय🏹🏹🏹 सूर्य से मृत्युँजय-
घना तिमिर था
अमावस का
जप तप नारी का
पावस था।
वर मुनि
नारद का
बलवान हुआ ।
तत्काल
पति बिन प्राण हुआ ॥
सौभाग्यवती
सावित्री ने
जब वर मांगा स्वयं
मृत्यु से ।
तब अखंड सतीत्व से
जीवित पुनः
उसका सौभाग्य
सत्यवान हुआ ॥
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" शौर्यं त्यागं आग्रहयति "
मां आपका वरदहस्त मेरे शीश पर है तो
मैं अनंत काल तक लड़ता ही जाऊंगा...
लड़ता ही जाऊंगा
मां आशीष दें शक्ति दें विजय या मृत्यु दें
आपका पुत्र मैं वो युद्ध लड़ूंगा की अमर नहीं
मृत्युंजय हो जाऊंगा..-
सुबह सुबह अख़बार को देखकर
इतना घबराया ना कीजिए साहब
अख़बार में बस उतना ही आता है
जितना खाना खाने के बाद थाली में
जूठा छूट जाता हैं... #MS-
छीन लिया जिससे
धनुर्विद्या का अधिकार,
सहना पडा जिसे
समाज का तिरस्कार,
प्रताड़ित किया जिसे
समाज ने बार-बार,
उसनें ले सहारा शोर्य का,
दे डाली ललकार,
पराक्रम से उसनें भेद डाला
समाज का अहंकार,
महादानी वो कहलाया
कर गया जननी पर उपकार,
देके प्राण दान वो,
स्वयं चला गया मृत्यु के द्वार,
ऐसे मृत्युंजय कर्ण को
नमन करें ये संसार।।-
मोहब्बत भी अब उर्दू के जैसी हो गई है,
समज में कुछ आती नहीं,
बस अच्छी लगती है-