मेरी बे-लिबास एहसासों में
मुसलसल तेरा ही आना,
मोहब्बत है क्या ❔
इन बहकी हवाओं में तेरी इत्र की
खुशबू तलाशना,
मोहब्बत है क्या ❔
यूं कहते कहते रुक जाना,
अपनी धड़कनों में तुझे सुनना !
यूं बेवजह तुझे लिख के मुस्कुराना ,
और फिर सबको सुनाना !
मोहबब्त है क्या ❓-
बा-ख़ुदा हो चली क़ुर्बान, यूँ नींदें सर्द रातों की
मुसलसल ख़्वाब क़ाबिज़ हैं, तेरे ही ऑंखों में-
कितनी तकलीफ सहती हुई
आयी मेरी माँ मुसलसल...
और बच्चो को मालूम भी
न होने दिया कभी दरअसल...
Love u Maa-
'काश' तुम होती तो ऐसा होता, वैसा होता
फकत इसी सोच में मुसलसल जिंदगी जिए जा रहे है।-
ख़्वाहिश थी इश्क़ की मुक़म्मल कहानी लिखने की
अब लिख रहा हूँ मुसलसल यादें उसकी-
तसलसुल नहीं है इब्तिदा नहीं है
मोहब्बत कहाँ है कुछ पता नहीं है
चला था दिलों को जीतने कभी मैं
उधर भी अभी वो रास्ता नहीं है
सुना है मुझे कुछ इश्क़ से मिलेगा
नवाज़िश है तेरी मोजिज़ा नहीं है
मुसलसल तड़प भी दर्द-ए-दिल बढ़ाए
दुखा है बहुत कुछ दिल भरा नहीं है
रहोगे कहाँ तुम सोचना न 'आरिफ़'
नशा ही नशा है मय-कदा नहीं है-
सिलसिले चलते रहे, मुसलसल,
मुलाकात में ढ़लते रहे, मुसलसल,
वो चाँद में हमको, देखा किये,
हम चाँद से जलते रहे, मुसलसल।
वो ख़्वाब में आते रहे, मुसलसल,
हर रात सताते रहे, मुसलसल,
हुस्न के वार से हम गिरते रहे,
और गिर के संभलते रहे, मुसलसल।
एहसास मचलते रहे, मुसलसल,
मौसम बदलते रहे, मुसलसल,
और साड़ी का बन के पल्लू,
काँधे से फिसलते रहे, मुसलसल।-
चुभतें हैं मुसलसल
मुझे ये काँच के सपने मेरे,
लगता है, किसी ने बड़ी
शिद्दत से तोड़े हैं ख्वाब मेरे।-