mithun Sinha   (✍️.... Mithun Sinha)
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Joined 20 June 2018


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Joined 20 June 2018
19 MAY 2023 AT 21:23

गर मालूम होता जिंदगी में क्या होना है
शायद आसान होता , तुम्हें भूलाने में।

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10 MAY 2023 AT 14:57

किसी शख्स पर आज तक गुस्सा ना आया
वो शख्स थोड़ा सा अपना लगा था।

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29 JUL 2019 AT 9:28

हाँ खड़ा था साहिल पर जब वह मझधार में थी
कैसे पहुंचता उस तक
वह नाम पुकार रही थी किसी और का।

टूटी जब उम्मीद ,बिखरने लगी मेरे बाहों में
चाहकर भी उसे बाहों में भर ना सका......
इजहार-ए-मोहब्बत कर ना सका,साकी!

यह अभिमान था या फिर गुरुर था
न जाने उसे इतना भरोसा किस पर था।

जुबान पर अभी भी ,किसी और का नाम था
शायद कुछ सपनों का चकनाचूर होना बाकी था
एक दफा और उसे मौका देना,अभी बाकी था
शायद किसी पर भरोसा अभी भी कायम था ।

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27 JUL 2019 AT 10:20

'काश' तुम होती तो ऐसा होता, वैसा होता
फकत इसी सोच में मुसलसल जिंदगी जिए जा रहे है।

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24 DEC 2021 AT 1:06

कल तक जो बड़ों की बातें बुरी लगती थी
आज वही बातें हम बच्चों से करने लगे हैं l

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8 SEP 2021 AT 19:30

महफिल में मिले हर कोई ,ऐसी कोई शाम हो
मैं ना रहूँ और, तेरे होठों पर मेरा जिक्र रहे।

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7 SEP 2021 AT 21:48

टूटते हुए तारों से अब मन्नत मांगेगा कौन
ये नई नस्ल है, इससे सवाल पूछेगा कौन?

खड़ा होकर साहिल पर, समंदर देखेगा कौन
रिश्ता चंद दिनों का है, इनसे वफा की बात पूछेगा कौन?

सारी हुकूमत उनके हुकुम के तामिल है,
अखबारों में अब, सच छापेगा कौन?

ये हालात चंद दिनों की कवायत नहीं है
अपने-अपने पूर्वजों से,अब सवाल पूछेगा कौन?

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25 JUN 2021 AT 23:19

गुजर जाउँ तेरी गली से,आखिरी ख्वाहिश है
क्या खुले बालों में आज भी हसीन लगती हो?
आखिरी मुलाक़ात चाहता हूँ।

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25 JUN 2021 AT 20:47

लोट कर
किनारे लगना
चाहता हूँ,
'जिंदगी' है कि
कंधों पर बैठकर,
समंदर पार
करना चाहती है।

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5 JUN 2021 AT 21:15

तुम्हारे शहर की हवा अब तुम्हारी
बातों की तरह जहर सी हो गई है,
लगता है तुम्हारे शहर में दिल तोड़ने के
साथ-साथ पेड़ काटने का भी रस्म है।

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