गर मालूम होता जिंदगी में क्या होना है
शायद आसान होता , तुम्हें भूलाने में।-
फॉलो करके अनफॉलो वाला खेल... read more
हाँ खड़ा था साहिल पर जब वह मझधार में थी
कैसे पहुंचता उस तक
वह नाम पुकार रही थी किसी और का।
टूटी जब उम्मीद ,बिखरने लगी मेरे बाहों में
चाहकर भी उसे बाहों में भर ना सका......
इजहार-ए-मोहब्बत कर ना सका,साकी!
यह अभिमान था या फिर गुरुर था
न जाने उसे इतना भरोसा किस पर था।
जुबान पर अभी भी ,किसी और का नाम था
शायद कुछ सपनों का चकनाचूर होना बाकी था
एक दफा और उसे मौका देना,अभी बाकी था
शायद किसी पर भरोसा अभी भी कायम था ।
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'काश' तुम होती तो ऐसा होता, वैसा होता
फकत इसी सोच में मुसलसल जिंदगी जिए जा रहे है।-
कल तक जो बड़ों की बातें बुरी लगती थी
आज वही बातें हम बच्चों से करने लगे हैं l-
महफिल में मिले हर कोई ,ऐसी कोई शाम हो
मैं ना रहूँ और, तेरे होठों पर मेरा जिक्र रहे।-
टूटते हुए तारों से अब मन्नत मांगेगा कौन
ये नई नस्ल है, इससे सवाल पूछेगा कौन?
खड़ा होकर साहिल पर, समंदर देखेगा कौन
रिश्ता चंद दिनों का है, इनसे वफा की बात पूछेगा कौन?
सारी हुकूमत उनके हुकुम के तामिल है,
अखबारों में अब, सच छापेगा कौन?
ये हालात चंद दिनों की कवायत नहीं है
अपने-अपने पूर्वजों से,अब सवाल पूछेगा कौन?-
गुजर जाउँ तेरी गली से,आखिरी ख्वाहिश है
क्या खुले बालों में आज भी हसीन लगती हो?
आखिरी मुलाक़ात चाहता हूँ।-
लोट कर
किनारे लगना
चाहता हूँ,
'जिंदगी' है कि
कंधों पर बैठकर,
समंदर पार
करना चाहती है।-
तुम्हारे शहर की हवा अब तुम्हारी
बातों की तरह जहर सी हो गई है,
लगता है तुम्हारे शहर में दिल तोड़ने के
साथ-साथ पेड़ काटने का भी रस्म है।-