मुद्दतों से उन्हीं मुद्दों से घिरे हैं हम
आज़ादी के बाद से देखो कितना गिरे हैं हम
राजनीति तो अब एक धन्धा हो गया है
आँख वाला भी आज अन्धा हो गया है
जो कल था, वही आज है, वही कल भी रहेगा
दल, बल, छल और दलदल भी रहेगा
हाथ, कमल, झाड़ू, बस निशान अलग हैं
नेताओं की कहाँ कोई पहचान अलग है
गरीबी को मुद्दा बनाकर अमीर बन गये लोग
नेता हैं अगर डॉक्टर तो जात पात है रोग
आदत डाल ली हमने इन मुद्दों के संग जीने की
मोल नहीं है इस देश में खून और पसीने की
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