वो धीरे धीरे मुझसे प्यार करने लगी है...
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बुराई जाननी है मेरी,
मुझसे पुछो।
अच्छाई जाननी है,
बेहतर होगा खुद ही ढूढ़ो।-
किसी को नफ़रत है मुझसे तो कोई ऐतबार कर रहा है,
किसी को मेरी शक़्ल पसंद नहीं और कोई दीदार कर रहा है,
किसी को लड़ाई करनी है मुझसे तो कोई प्यार कर रहा है,
किसी को मेरी परछाई पसंद नहीं और कोई इंतज़ार कर रहा है,
किसी के पास मेरे लिए वक्त नहीं तो कोई बेवक़्त मेरा इंतज़ार कर रहा है,
किसी को मेरे साथ चलना पसंद नहीं और कोई मेरे साथ चलने को तैयार हो रहा है
किसी को मेरा सफ़र पसंद नहीं और कोई हमसफ़र के लिए तैयार हो रहा है...!
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कहने को तो वो, इश़्क मुझसे करते थे,
पर शराब वो,किसी और के लिए पीते थे।-
इक मैं कि इंतज़ार में घड़ियाँ गिना करूँ
इक तुम कि मुझसे आँख चुराकर चले गये-
कुछ इस तरह से सौदा किया मुझसे मेरे वक़्त ने
तजुर्बे देकर वो मुझसे मेरी नादानियाँ ले गया-
मन नहीं लगता मेरा 'मेरे अंदर' अब
कोई खींच के बाहर निकालो मुझे 'मुझसे' अब
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जर्रा _ जर्रा खुद को समेट कर
बनाया है मैंने ...
"मुझसे कभी ये ना कहना"
बहुत मिलेंगे _ तुम जैसे...!-
2012 - वो साल जब मैं तुमसे पहली बार मिला था । हर दिन तुम्हें जाते हुए तब तक देखना जब तक तुम सड़क पर दाएं मुड़कर ओझल न हो जाओ, यह पहले दिन से मेरी आदत में शुमार था । आज भी सोचकर अच्छा ही लगता है । खैर, उसमें कुछ बुरा था भी कहाँ ।
2013 में तुमसे पहली और आखिरी बार इशारों में यह जताने की कोशिश की थी कि 'तुम, ऐ खूबसूरत, कितनी पसंद थीं मुझे', जो शायद तुम कभी समझ भी न सकीं थीं । उस साल exams के बाद दिमाग को दिल से आगे रख कर यह निश्चय किया था कि इस बारे में तब तक कुछ नहीं कहूँगा जब तक खुद से कुछ करने लायक न हो जाऊं । सच कहूँ तो नहीं जानता कि उस दिन कितनी बातें खुद पर और कितनी किस्मत पर छोड़ी थीं । पर इस निर्णय का कभी बुरा न लगा ।
पर आज खुश हूँ कि तुमसे मिल सका, दोबारा । और ज़्यादा खुशी इस बात की है खुद के बूते पर कुछ कर सकने लायक होने के बाद तुमसे वह सब कह सका जो आजतक तुम्हारे बारे में महसूस किया है ।
क्या पता, शायद यह भी उसी का हिस्सा हो ।
मदद करो न मेरी । जल्दी मिलो मुझसे । फिरसे ।-