दुनिया की नज़रों में, मैं अच्छा हो जाऊं,
मैं ऐसा क्या करूँ की तेरा ही हो जाऊं!
अब तो कौन किस का ऐतबार करता है,
मैं क्या झूठ बोलूं कि मैं सच्चा हो जाऊं!
दुनियादारी अब मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं चाहता हूँ फिर से मैं बच्चा हो जाऊं!
मैं सजायाफ्ता हूँ, बेशक, मेरी गलती है,
क्या गुनाह करूँ, जो बेगुनाह हो जाऊं!
ऐसा हो कि खुद से जो खुदको मिला दे,
काश मैं वो वैसा कोई आईना हो जाऊं!
हर अल्फ़ाज़ से तुम मुकम्मल किताब हो
मैं ऐसा क्या लिखूं जो ग़ज़ल हो जाऊं!
ख़ामोश लबों को पढ़ नहीं पाया "राज" _Mr Kashish
मैं ऐसा क्या पढूं की अनपढ़ हो जाऊं!-
मुकम्मल नही हो पाता वही तो प्यार होता है।।
धड़कन तो आज भी बढ़ जाता है..
बस तेरे नाम के सुनने का इंतज़ार होता है।-
मोहब्बत हमारी, कुछ यूँ मुकम्मल हो गई
मैं उस जैसा हो गया, वो मुझ जैसी हो गई
- साकेत गर्ग 'सागा'-
"तेरा होना चाहता हूं"
तेरे एहसांसो के मोती को, दिल के धागे में पिरोना चाहता हूं।
हर पल हो तेरी ही फिक्र, याद में इस कदर खोना चाहता हूं।
एक डर सा लगा रहता है यहाँ, कि कोई तोड़ ना दे मुझे
महफूज़ रखूं खुद को, तेरे दिल का वो कोना चाहता हूं।
मुद्दतें हो गयी हैं, सुकून की नींद नहीं पड़ती
अब तो बस तेरी, बाहों का बिछौना चाहता हूं।
छुपा चुका बहुत मैं, इन जज्बातों को जमानें से
तेरे कंधे पे सर रख अब, सरेआम रोना चाहता हूं।
जवानी नहीं मुस्कुराती कभी, अब उस बचपन की तरह
उछल पड़ता था खुशी से, बस वही खिलौना चाहता हूं।
अच्छे कामों में देर नहीं करते, चलो मुकम्मल कर दो
अपना बना लो मुझे, मैं तो बस तेरा होना चाहता हूं।-
दुखी है वो अब मुस्कुराए भी कैसे
ये आँसू किसी को दिखाए भी कैसे
मुक़द्दस नहीं है मोहब्बत किसी को
वो सपने सुहाने सजाए भी कैसे
गुज़ारिश करे किस के पीछे पड़े
ख़ुदा को वो अर्ज़ी लगाए भी कैसे
ये इमरोज़ आकर बना है दीवाना
गुज़ारे पलों को भुलाए भी कैसे
मुकम्मल कहानी हुई ही कहाँ थी
अधूरी कहानी सुनाए भी कैसे
हसीनों की आदत से पुरनूर होकर
हसीनो को दिल में बिठाए भी कैसे
जो 'आरिफ़' का होकर भी उसका नहीं है
उसे पास अब वो बुलाए भी कैसे-
वह फासलों की वजह हमे बताते हैं,
उने क्या पता ,
उन के हक में बयान दे ,
गुनाहगार भी हम ,
खुद को बताते हैं ।-
अच्छा हुआ जो इश्क़ मुकम्मल न हुआ
वरना बेवजह इश्क़ की कीमत समझता कौन
-©सचिन यादव-
मैं झूठ लिखती हूँ, तुम सच लिख देना।
मेरी अधूरी दासताँ को, तुम मुक्क्मल कर देना।-