मुंदमिल
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दर्द दिए जिन जख़्मों ने, वो मुंदमिल हो गए
पर यह तो बताओ, उन निशानों का क्या करें-
मुंदमिल से ज़ख़्मों को फिर से..कुरेद आए हम,
तेरी यादों से...आज फिर रिश्ता जोड़ आए हम,
यह दर्द तो हमको अपना..हमनवाँ सा लगता है,
ये रुठ न जाए हमसे..तभी खुरंड नोच आए हम,
बे-एतबारी के ज़ख़्म तो..कभी भी भरते नहीं हैं,
मुख़्लिस रिश्तों से भी..ये ज़ख़्म संजो लाए हम,
मोहब्बतों की बारिश में...भीगने की आदत मेरी,
बाद तेरे...अश्क़-ए-अब्र से खुद को भिगाए हम,
लहू टपकती दीवार-ए-दिल ही सुकून देती हमें,
इसलिए कुछ ज़ख़्म तेरी याद से मांग लाए हम!-
उनके हर मखमली अल्फ़ाज़ ने मुंदमिल कर दिया है कल्ब को,
लगता है नर्गिस ए साहिर का इल्म बहुत खूब रखते है वो।।-
ऐ दिल अब सँभल जाना तुम
फिर से शरारत न करना,
मुंदमिल हैं हिज्र के ज़ख़्म तेरे
फिर से मोहब्बत न करना।-
वो बात क्या करें जिसकी कोई खबर ना हो,
वो दुआ क्या करें जिसका कोई मूंदमिल ना हो,
कैसे कह दे कि लग जाय हमारी उमर आपको,
क्या पता अगले पल हमारी उमर ना हो!!-
मुंदमिल हो भी जाएं यारा ...
तेरे दिए निशान ना छूटेंगे !!
कोई ! अमावस ही आ, अब ढक ले मुझे ...
यूँ तो ! हर रात, ये निशान ना छूपेंगे !!
सुखविंदर ✍️🌄✍️-
ताज़ा किए हैं बारम्बार मैने मुँदमिल मेरे।
ये घाव हैं तो, मुझमें ज़िंदा है, तू आख़िर ॥-
तेरे आनेकी आहट से ही,
भरने लगे ज़ख्म ❤️ के,
आकर बात न करना जाने की,
सोच कर ही नासूर होने लगे हैं मुंदमिल ❤️ के.-
मुंदमिल जख्म वह फिर से हरा कर गया।
झोंका हवा का आज तेरा पता देकर गया।-