तन्हाई के बादल जब कभी हम पर छाते हैं,
ख़्यालों की बारिश से तब भीग हम जाते हैं।
मिलता सुकून कभी ख़्यालो की बारिश से,
कभी ख़्यालो की बारिश से तड़प जाते हैं।
सैलाब आता है जब ख़्यालो की बारिश से,
ज़िंदगी के गुज़रे लम्हें रु-ब-रु हो जाते हैं।
अजब मंज़र होता है ख़्यालो की बारिश का,
हुए वक़्त से धुंधले चेहरे साफ़ नज़र आते हैं।
जब भी भीगता"अनूप"ख़्यालों की बारिश में,
ख़ुशी-ग़म के अश्क़ आँखों में छलक जाते हैं।-
हर तरफ दिखता बस हुजूम-ए-अज़ाब है,
ज़िंदगी लगती जैसे टूटा हुआ गुलाब है।
छलक जाते अश्क़ लब मुस्कुराने लगते,
मिलता जब क़िताब में टूटा हुआ गुलाब है।
मिलती नहीं ताबीर जब किसी ख़्वाब की,
बिखरती ज़िंदगी जैसे टूटा हुआ गुलाब है।
कहानी ज़िंदगी की हो या हो मौत की,
हर किस्से में रहता टूटा हुआ गुलाब है।
ख़ुशी मिलती “अनूप“ को बस उतनी देर,
जितनी देर महकता टूटा हुआ गुलाब है।-
व्यर्थ है जीवन यदि जीवन में संस्कार न हो,
मानव हृदय में यदि संस्कारों का श्रृंगार न हो।
उपकार करे कोई न भूलना करना धन्यवाद,
संस्कार नहीं यदि धन्यवाद संग प्यार न हो।
इच्छा हो विन्रम बनने की तो करो प्रार्थना,
संस्कार नहीं यदि प्रार्थना में सुविचार न हो।
अपराध हो जाए तो भूलना न मांगना क्षमा,
संस्कार नहीं यदि क्षमा मिले पर सुधार न हो।
जानता “अनूप“ चलता है जीवन नियमों से,
संस्कार नहीं यदि जीवन नियमानुसार न हो।-
पैसा ज़माने को क़दमों में झुकाता है,
पैसा सच झूठ पर नक़ाब चढ़ाता है।
छू लेता है आसमां पैसे से इंसा,
पैसा इंसा को बुलंदियों पर बैठाता है।
बढ़ जाती है ज़िंदगी गर हो पैसा पास,
पैसा ही मौत से चंद साँसे छीन लाता है।
बिखर जाते हैं गरीब पैसे की चाहत में,
पैसा इंसान को इंसान का गुलाम बनाता है।
जानता है “अनूप" क्या होती ताक़त पैसे की,
पैसा ज़िंदगी में सुख-दुख के रंग भर जाता है।-
यूँ गूँजती है मेरे कानों में तेरे दिल की हर धड़कन,
हमें तो वो भी सुनाई देता जो तुम कहते ही नहीं।-
मेरे किसी काम न आया तजुर्बा जीत का,
वो पास आए मुस्कुराए हम दिल हार गए।-
यूँ लिपटी रहती है मोहब्बत मेरी रूह से,
जैसे ज़िंदगी का हर किस्सा है मोहब्बत।-
ख़ुशी तुम्हारी थी पर मेरी किस्मत में ग़म थे,
एक वक़्त था जब तेरे दीवाने सिर्फ हम थे।
देखते थे हम जब भी हँसी तेरे चेहरे पर,
रहते नहीं थे तब याद हमें क्या ग़म थे।
ख़ुशी तुम्हारी तोड़ गई है मेरे सारे ख़्वाब,
सजी महफ़िल तुम्हारी थी पर तन्हा हम थे।
छलका गई है मेरे अश्कों को ख़ुशी तुम्हारी,
करें छलनी भी मेरे दिल को दबे जो ग़म थे।
तड़प रहा “अनूप" बस ये बात सोच कर,
ख़ुशी तुम्हारी थी पर क्यों नहीं साथ हम थे।-
लूटा है तू ने मुझे ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
ऐ मोहब्बत तेरे इरादे कभी नेक नहीं लगे।-