नफरत करने वालों से भी प्यार करो, तो कोई बात बनें।
अपनें जीवन का कुछ यूँ आधार करो, तो कोई बात बनें।
अमीरों की खातिर हर कोई, जान हथेली पे रखता हैं
गरीब के हक में जान निसार करो, तो कोई बात बनें।
बेटी है तो क्या हुआ, उसके भी कुछ अरमान हैं
उसे भी बेटे जैसा दुलार करो, तो कोई बात बनें।
वो दुल्हन बनकर आयी है, तुम्हारे घर आंगन में
उससे मायके वाला प्यार करो, तो कोई बात बनें।
यूँ तो सब सजते-संवरतें हैं, इस शरीर के लिये
तुम "आत्मा का श्रृंगार करो", तो कोई बात बनें।
चूमकर कदम माँ-बाप के, शुरुआत हो दिन की
अपने घर के ऐसे संस्कार करो, तो कोई बात बनें।-
"गुजर जाते हैं"
सिलसिला है जो इस प्यार का, यूँ तो अक्सर नहीं होता
दिल मेरा सब जानता है, फिर क्यूँ इसे सबर नहीं होता।
हिचकियाँ आने लगती थीं, कभी मेरे एक याद से ही
अब गुजर भी जाएं गली से, तो उनको खबर नहीं होता।
मैं घुट घुट कर जी रहा हूँ, उन्हें दूसरा यार मिल गया है
ये इश्क का इंसाफ कमबख़्त, अब बराबर नही होता।
ये जमाना है स्वार्थ का, फिकर नहीं किसी को गैरों की
गर तुम टूट भी जाओ अब , तो उनको असर नहीं होता।
ये प्यार है "नवनीत", खुद से ज्यादा दूजे पे भरोसा करते हैं
देखे गर शक की निगाह से, वो सच्चा हमसफर नहीं होता।
उखाड़ना नहीं कभी पुराने पेड़ को, आंगन में छाया करता है
साथ रहते नहीं माई-बापू जहाँ, वो घर यूँ तो घर नहीं होता।-
मम्मा-पापा एक बहुत बड़ी शिकायत है तुमसे
हो आज भी मेरे पास तस्वीर में मगर गुम से
रोज मिलते हैं बहुत लोग इस जहान में मगर
ढूँढने पर भी नहीं मिलेंगे मुझे माँ-बाप तुम से
माँ मुझे जन्नत से देखो क्या मैं नज़र आ रही हूँ
आहिस्ता-आहिस्ता रोज की यादों को भूला रही हूँ
आपकी बाहों में गुज़ारे पल मुझे सताने चले आते है
आँखों से आँसू तकिये पर इसी बहाने चले आते हैं
बहुत मज़बूत हूँ मैं लेकीन बर्फ सी पिघल जाती हूँ
खुद को खो देती हूँ और जोर से चीखती चिल्लाती हूँ
किससे कहूँ दिल की बात कोई है ही नहीं अपना
तुम लौटकर आओगे उम्र भर देखती रहूँगी सपना-
हर कदम लँगड़ी देकर भी दुनिया
मुझे गिरा ना पाती है
मेरे माँ-बाप ने मुझे चलना है सिखाया
शायद यही भूल जाती है
- साकेत गर्ग-
....माँ की ममता....
वह भी क्या दिन था
जब गरीबी सताती थी
अपने को वह भूखी रखकर
खुद तुम्हें वह खिलाती थी-
माँ इस कायनात की इकलौती ऐसी प्राणी है जो औलाद की ख़ुशी के लिए अपनी सारी खुशियां कुर्बान कर देती है। और पिता इस ब्रह्मांड का अकेला ऐसा फ़रिश्ता है जिसकी तारीफ़ के लिए लफ्ज़ ही उपलब्ध नही हैं।
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लगीं हो आशियाने में अाग,
तो तिली को नहीं ढूँढते...
सोएं हुए अरमान भी,
फिरसे आँख नहीं मूंदते।
आखिर लावारिस ही हो,
तुम इस जहाँ में, साहिब!
माँ बाप चले जाएं तो,
हाल बच्चे तक नहीं पुछते।-
वक़्त-बेवक़्त ख्वाहिशों के हर पन्ने भरते है...
'हम खुश रहे' इस सोच में माँ-बाप पल-पल मरते है।-
माँ की मोहब्बत काफी थी इस ज़हाँ में, पर
खुदा ने वालिद का मर्तबा भी कम न किया।-