वे स्वाभिमानी थे। उन्होंने संकट में घास की रोटियां खाई थीं।आपने कभी ये रेसिपी चखी है?
आपने कभी 80 किलो का भाला फेंका है?
नहीं, कभी नहीं!
आपकी निगाहें इस दौर के महाराणा प्रताप पे गईं कभी?-
In the honour of
Chetak
Read the poem below in the caption and don't forget to to give your valuable and precious comments so that I can descover; how about my writing skills?-
एक ऐसा योद्धा जिसके आगे
कईओ ने हथियार डाल दिए।
जिसके किससे आज भी
राजस्थान में है गूँज रहे।
आज उनकी जयंती पर
वो नमन हमारे स्वीकारे
यही सदइच्छा कर रहा
मेरा रोम-रोम है।-
राणा सांगा के थे वंशज
राजपूती थी इनकी शान,
रहते थे प्राण निछावर करने को
तत्पर, मेरे देश का थे अभिमान,
हल्दीघाटी में बह गई रक्त की धारा
अरिदल मच गई चीख पुकार,
फीका पड़ता था तेज सूरज का
राणा की निकलती थी जब तलवार ,
जिसके त्याग और बलिदान पर पशु भी गौरव करते थे
प्रेम देख राणा का चेतक जैसे घोड़े उनकी खातिर मरते थे
अकबर जैसे शत्रु भी दिल में प्रेम उनसे करते थे
सपने में देख महाराणा प्रताप को वो डर जाया करते थे
महलों का सुख छोड़ जंगल में रात बिताया करते थे
छोड़ पकवानों को घास की रोटी भी खाया करते थे
बेटा खोया बेटी खोई पर आंखों ने ना नीर दिया
धन्य है मेवाड़ की धरती जिसने ऐसा महान हमें वीर दिया
नमन तुम्हें है वंदन मेरा बारंबार शीश झुकाते हैं
जयंती पर आज हम आपके शौर्य की गाथा गाते हैं
_saritamahiwal
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वीर सपूत नाम था जिसका वो कुंभलगढ़ दुर्ग का रहने वाला था
हार गए तो गौरव तेरा और धन उसका ये बात समझाने वाला था !!
खुद घास की रोटी खाई थी पर दुश्मन को धूल चटाने वाले था
अरे सब कुछ खोकर भी वो वीर सपूत मेवाड़ को अपना बना डाला था !!
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गाई आज भी जाती है जिसकी सारे जग में गाथा।
ऐसे शूरवीर के आगे टेका था अपना मुगलों ने माथा।
हार के भी जो जीत जाए उनके जैसा और वीर कौन था।
जिसकी सिर्फ तलवार से रूह कांप जाएं ऐसा और शुरवीर कौन था।।।
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घास की खा लीं रोटियां, पराधीनता का पकवान नहीं खाया,
हम उस महाराणा की सन्तानें हैं, जिसने एहसान नहीं खाया।
जिसका चौपाया चेतक भी आदम सम चतुर वीर सेनानी था,
जिसके रहते मेवाड़-मुकुट-मणि पर कोई निशान नहीं आया।
वह राजपूत, रजवाड़ा, किन्तु भीलों की आँखों का ध्रुव तारा,
तेज से जिसके फीका सूरज, जैसा फौलादी इंसान नहीं आया।
महाप्रतापी प्रजाप्रेमी न्यायी दरियादिल मातृभक्त वो राजा था,
उस परमवीर योद्धा का किस-किस ने गौरव-गान नहीं गाया।
जिसके सोने पर अरि-दल पति की आँखें भी गीली हो आयीं,
जिसके अमरत्व पर गर्वित हिंद को कभी थकान नहीं आया।
प्राणों से प्रिय थी आज़ादी, जिसको कोई भी बाँध नहीं पाया,
हम उस महाराणा की सन्तानें हैं, जिसने एहसान नहीं खाया।-
नर नहीं नार था वह
हल्दीघाटी का श्रृंगार था वह
शूर नहीं बलिदानी शूरवीर था वह
मेवाड़ नहीं भारत की पहचान था वह
महलौ का ही नहीं जंगलों का राजा था वह
पड़ोस तो क्या मुगलों को हरा रखा था वह
कौन भूले गुणगान उनके हिंदुत्व की पहचान था वह !!
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