Raunak Shandilya   (© रौनक शांडिल्य)
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Joined 30 December 2017


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Joined 30 December 2017
1 NOV 2023 AT 12:37

ठहरो वीर! तुम शस्त्र न डालो,
अभी अस्तित्व का समर शेष है.
धड़ रुधिरमय पर है डटा शीश,
अन्तिम श्वास तक समर शेष है.

ठहरो वीर!..
उलट-फेर तक समर शेष है.
लड़ो वीर! तुम हार न मानो,
कामयाबी का कमल शेष है।

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28 MAY 2023 AT 21:21

हम उस बिखरे किरदार के दीवाने हैं साहब
जिसको ग़र समेटेंगे आप तो सदियां लगेंगी

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30 APR 2023 AT 17:50

दिन गुजरा, गुजरे साल और जमाने गुजर गए,
है ताला मगर ठहरा हुआ इक ज़ुबाँ पे आजतक.

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27 APR 2023 AT 20:59

जब निकला तो मैं कहाँ अकेला था
संग मेरे, संग मेरे अंधेरो का मेला था।
सुन्न पड़ते जिस्म से निकलती गर्म हवाएं थीं
अब भी पर मैं ज़िंदा था जाने किसकी दुआएं थीं।

मैं भूखा हूँ, मैं प्यासा हूँ, मैं अम्मी की निराशा हूँ
अरे देखो, तनिक पिघलो.. बेतरतीब मैं बेतहाशा हूँ।
सिर्फ ज़िंदा रहूँ, बस इसके लिए हो दुआएं क्या?
बहरे हो? मुझे अब नहीं मयस्सर हो दवाएँ क्या?

आह! ये चीख़..
यह चीख़ भी गला फाड़ कितनी तेजी से निकलती है
हाँफ के सिवा इन्सान की कोई ज़ोर ही न चलती है।
ना पास तुम थे, ना वो था, और.. वो भी कहाँ आयी थीं
मैं अब भी अकेला था चीख़ अनसुनी ही लौट आयी थी।

मैं हूँ जीवन का सताया, मरण का ठुकराया हुआ हूँ
ना घर ही में बसाया और न घाट का बुलाया हुआ हूँ।
मैं क्यूँ ज़िंदा हूँ, बेचारा हूँ.. क्यूँ हारा हूँ आवारा हूँ?
रही है क्या कसर मुझसे, मैं इतना क्यूँ नाकारा हूँ?

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?

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4 MAR 2023 AT 22:21

आईना है आईना है आईना है
दो आँखें तुम्हारी मेरा आईना है।

हो दरपेश भी और मौन भी हो
हया है हाँ है ना है क्या माइना है?

और इश्क़ में इम्तिहां कुछ नहीं
फ़क़त इसमे सब्र का मुआइना है।

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22 FEB 2023 AT 11:47

राम! ताउम्र प्रेम को यह मलाल रहेगा
पर्वतशिला को पिघलाने में सक्षम प्रेम
एक 'चारुशिला' का दिल पिघला न सका

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21 FEB 2023 AT 9:18

तुम्हारा
प्रेम जब परीक्षा ले
सतहत्तर प्रकार से ले,
यह प्रेम का वाजिब हक है।

परन्तु
हे मेरे मनमीत!
एक दोस्त के नाते तुम्हें
नकल भी तो करानी चाहिए।

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9 FEB 2023 AT 12:34

अजी! कहीं और ना
कतल हमारा हुआ है,

दीवाना बस इसी
मुस्कान का मारा हुआ है!

आपकी सागर से गहरी
दो आँखों में जानां,

दोनों..हाँ दोनों जहान
दिल ने वारा हुआ है!!

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7 FEB 2023 AT 17:12

तुम अगर किसी को कुछ आज देना,
लाज़िम है कि उसमें इक गुलाब देना।
माशूक मीन ही क्यूँ जियें दिन आज का?
चाहिए सभी मछलियों को तालाब देना।।

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5 FEB 2023 AT 16:08

यहाँ नित नई रुत, नया मेला है
देखो पर नभ में सूर्य अकेला है

है शक्ति तुम ताप सहन कर लो
उठो,भानु पर तुम नयन कर दो
हे संज्ञा! सूर्य का वरण कर लो

पितु का प्रारब्ध प्रवर कर दो
बढ़ो सूर्य को अपना वर कर लो
धिया आसमान को घर कर दो

आप को अर्पित, हे आदित्य!
मैं, मेरा मन, मेरा कण-कण
है और समर्पित हे अतिप्रिय!
मेरे हर जीवन का क्षण-क्षण
स्वामी बढें अब अंगीकार करें
प्रभु प्रणय मेरा स्वीकार करें

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