Arun Prajapati  
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Profile me entry karne ke liye dhanyawad.
Joined 10 November 2019


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24 MAY AT 13:50

इस बार बैर करूँगा सबसे,
पर पहले मुलाक़ात-ए-ख़ैर करूँगा सबसे।

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20 MAY AT 16:33

जनाज़े तो निकलेंगे एक दिन, तय है सबके मगर,
ज़िंदगी किस तरह गुज़ारी, बात उस किरदार की है।
नफ़रतों से दिल भरे थे, या मोहब्बत छा गई,
बाद मरने के ज़माने को ये खबर मिल ही जाएगी।"

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20 MAY AT 11:32

कभी-कभी ऐसा लगता है, मैं खुद से बिछड़ गया हूँ,
आईने में दिखता हूँ मैं, पर पहचान मुकर गया हूँ।

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23 JAN AT 11:08

"जैसे दिखता है, वैसा कुछ नहीं है,
दिल में बसा दर्द, पर किसी को खबर नहीं है।
बस यूं ही आंखें नम हो जाती हैं,
वजह कुछ नहीं, पर सांसें थम जाती हैं।

यादों का कारवां हर पल साथ चलता है,
खुशियों के पीछे दर्द का साया पलता है।
हंसते चेहरों के पीछे छुपा एक ग़म है,
जो दिखता है बाहर, वो सच कम है।

तुम जो समझ सको, तो दिल के करीब आओ,
इस मौन में छिपे शब्दों को पहचान जाओ।
जैसे दिखता है, वैसा कुछ नहीं है,
यह दिल है मेरा, पर ये मेरा नहीं है।"

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6 DEC 2024 AT 17:20

ऐसा नहीं है कि दूध, सिर्फ गाय देती है।
पर बात अगर सुकून की कि जाय तो, सिर्फ चाय देती है।

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31 AUG 2024 AT 1:32

आशाएं मर गईं,
निराशाएं पनप ने लगीं
शय ना मिली मौत को
जिंदगी तड़प ने लगीं
ओ मंजर है ये जहां
जिंदगी जोक्स पर नहीं
जिंदगी पर हस ने लगीं
उम्र तमाम गुजरी तन्हा
इक झलक के लिए जिसकी
ओ मिली भी तो मेरे
हुलिए पर हस ने लगी
ना लगाया गले से
ना मेरा हाल पूछा
कदम आगे बढ़ाया
और फिर चल ने लगी
ओ मंज़र है ये जहां
जिंदगी जोक्स पर नहीं
जिंदगी पर हस ने लगी
फिर मैंने भी मूढ़ के
कोई आवाज ना दी
मैं हसने लगा अपनी हालत पे
ओ अपनी पे हस ने लगी
फिर बुझ गई तमन्ना सारी
मेरी हुस्न ए दीदार की
किया दफन मोहब्बत को किताबों में
और अब जिंदगी देखो मेरी
शायरियों में सज ने लगी
ओ मंजर है ये जहां
जिंदगी जोक्स पर नहीं
जिंदगी पर हस ने लगी।

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18 AUG 2024 AT 16:36

ना श्रृंगार किए न छोटे कपड़े पहने थे
सफेद वर्दी में उसका पूरा तन ढका था
उसके अपने नारीत्व के अभिमान को
कोई और नहीं स्वयं प्रशासन ने छला था
एक व्यक्ति नहीं पूरा प्रशासन ही यहां बलात्कारी है
जाने कब जागेगी जनता ,जाने किसकी अगली बारी है।

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17 JUN 2024 AT 21:21

उतनी दफा तो मुहब्बत भी नही हुई
जितनी दफा हम बदनाम हुए।

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17 JUN 2024 AT 12:49

मैं भी वही तुम भी वही,करू कितनी गुस्ताखियां अब, जी नहीं करता।
वही रास्ते वही मंजिले,वही पुराने यार पर संग चलने को अब, जी नहीं करता।।

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17 JUN 2024 AT 12:29

ज़ख्म ही ज़ख्म दिए सबने,
मरहम किसी ने लगाया नहीं।
एक बूंद तमन्ना थी प्यास की
एक बूंद जहर तक किसी ने पिलाया नहीं
तड़प तड़प के प्राण निकल गए
गले तक किसी ने लगाया नहीं
मातम तक किसी ने मनाया नहीं

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