इक अर्से बाद आईने में जो निहरा खुद को
दर्पण में एक अजनबी नजर आया मुझ को
फिर सोचा कौन है ये अजनबी,
ऐसा तो कभी ना देखा था मैने खुद को
आई एक धीमी सी आवाज तभी,
तुमने रहने ही कहां दिया मेरे जैसा मुझको
हमेशा ही की दूसरों की परवाह तुमने,
मेरे लिए तो वक्त मिला ही नहीं तुझ को
कभी बोलना भी चाहा तो चुप कर दिया दुनियाँ की खातिर,
अजनबी सा व्यवहार सदा ही मिला तुम से मुझको
जिनके लिए अजनबी बनाया मुझे...
बता जरा तेरी वफा का क्या सिला मिला तुझको
अब तू ही बता खाता क्या है मेरी "सरिता"
अगर दर्पण में, मैं अजनबी नजर आया तुझको
अभी भी वक्त है मिल मुझसे, तरस गया अक्स तेरा ही हूं मैं
इल्जाम ना देना फिर कि मैने पुकारा नहीं तुझको
✍️सरिता महिवाल
-
Instagram ID= sarita_mahiwal
शिक्षक का अर्थ
शि- शिखर तक जाने का रास्ता दिखाने वाला
क्ष-क्षमा की भावना रखने व सिखाने वाला
क-कमजोरी को ताकत में बदलने वाला-
ये कैसी बेइंसाफ़ी आज चल रही है
चरित्र पर वार ठीक नहीं पर दुनियाँ कर रही है
झांकता कोई नहीं अपने गिरेबां के अंदर
दूसरों में खामियां बस दिख रही है
वो जो कहते थे हम है तेरे अपने
वक्त की आंधी क्या चली फितरत बदल रही है
सता कर बेकसूरों को जाओगें कहाँ तुम
पाप की मटकी वो देखो भर रही है
अतीत को अपने ना तू देख मुड़कर
आत्मा को क्यों अपनी छलनी कर रही है
याद है ना किसी ने कहा था तुझसे "सरिता"
उसके घर अंधेर नहीं बस देर हो रही है
अंधे बहरों की बस्ती में क्या करना है रुक कर
चल यहां से अब तेरा यहां कोई नहीं है
अब भी मौका है बदल दे कल को अपने
देख नई सुबह की भोर हो रही है
✍️सरिता महिवाल-
करो तुम मोहब्बत इबादत के जैसे
बनेंगे हम कबूल हुई मन्नत के जैसे
साथ गर तुम्हारा मिल जाए हमदम
ज़िंदगी का सफर हो जन्नत के जैसे-
समय बदलना कभी ना सताया हमको
घर बदलने का गम भी ना रूलाया हमको
चोट तो तब लगी दिल जख्मी हुआ तब
गिरगिट से ज्यादा रंग इंसान को बदलते देखना आया हमको
ज़िन्दगी ऐसे बदल जाती है सोचा भी ना था
अपनों से ही ठोकर खाकर जीना आया हमको
इक अर्से बाद जो आईने में खुद को देखा
ना जाने कौन अजनबी सा नज़र आया हमको
बनाया औरों की खातिर गेर खुद का ही साया
आज पूछता है मुझे गेर बनाकर बता क्या मिला तुझको
ज़िन्दगी लेती है इम्तिहान सुना था "सरिता"
कर देती है जीना दुश्वार ये सुझा ना था हमको
✍️सरिता महिवाल-
मोहब्बत में उसकी वो शिद्दत नहीं है
करे जां निसार ऐसी उलफत नहीं है
बनाने लगे जज्बातों को लोग खैल "सरिता"
रिश्तों में पहले सी रूहानियत नहीं है-
अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से, कौन यहां आज तक जी पाया है
किस्मत ने कभी न कभी सबको, कठपुतली बनाकर नचाया है
इंसान तो चाहता है, कि मैं जीयूं मेरे तरीके से
समय के चक्र से ऐ दोस्त , कौन यहां बच पाया है
इंसान सोचता कुछ, और होता कुछ और है यहां
यह वक्त है साहब, इसने रंक को राजा, राजा को रंक पल में बनाया है
राजतिलक होना था प्रभू राम का, अगले ही पल वनवास दिलाया हैं
सीता जैसी राजकुमारी को, वन-वन इसने भटकाया हैं
कहते हैं कुछ लोग, हमने अपने तरीकों से जीवन बिताया हैं
मूड़ कर देखा पीछे तो किसी का कुछ छूटा, किसी का कोई काश नजर आया है
मेरी ज़िंदगी मेरे तरीके, अब ना मेरे वश में है
जब-जब समझना चाहा इसे, इसने और उलझाया है
टूट गये वो वृक्ष जिन्होंने तुफानो में खुद को न झुकाया है
मिली मंजिल,जिसे बदलते मौसम, बदलती राहों के साथ चलना आया है
यहां वही जीता, जिसने वक्त को साथी बनाया है
बड़े-बड़े शहंशाहों का, इसने वहम मिटाया है
अपने तरीके से तो यारों, बस उसी को जीना आया है
वक्त की मार खाकर, जिसने खुद को हीरा बनाया है
✍️सरिता महिवाल-
स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि 🙏🏻🙏🏻
कृपया अनुशीर्षक पढें 🙏🏻-