हमारे बेहतरीन कल के लिए, खूब पसीना था उन्होंने बहाया
जीवन इत्र सा यूंँ ही नहीं महका, खून, पसीना उनका है रंग लाया
जीवन के तापों से हमें, बचाया बनकर विशाल साया
अच्छे बुरे हालातों में, मजबूत दरख्त की तरह खड़ा हमेशा उनको पाया
बच्चों के भविष्य की खातिर , दिन-रात था हाड़ गलाया
खुद की परवाह न करके , रुखा सूखा खुश होकर खाया
पथ के कांटे चुन चुन कर, हमारे लिए सुगम मार्ग बनाया
हमारी छोटी-छोटी खुशियों में, वो फरिश्ता फूला ना समाया
खुद के लिए कुछ अच्छा खाना, पहनना, कभी उन्हें ना भाया
बच्चों को मनचाहा देकर, दिल का सुकून था पाया
परिवार की खुशियों की खातिर, खाक कर दी अपनी काया
खुशनसीब हूं मैं पापा, जो पिता के रूप में था आपको पाया
आज भी मेरे साथ हो, ये एहसास आपने कई बार कराया
ईश्वर से भी बढ़कर पापा, आपको है मैने पाया
✍️सरिता महिवाल-
Instagram ID= sarita_mahiwal
हम लिखते क्यों हैं
रिश्तों को बनाए रखने के लिए, चुप रहना भी जरूरी था
कुछ अपनों की मुस्कान की खातिर, कुछ सहना भी जरूरी था
इस दुनियाँ में जीने के लिए, मन को हल्का करना जरूरी था
और मन को खाली करने के लिए, लिखना बहुत जरूरी था-
ऑपरेशन सिंदूर
निहत्थे लोगों पर वार किया, यह कायरता की हैं निशानी
नहीं देखा शौर्य मांँ भारती के बेटों का, वे बुजदिल कर गए हैं नादानी
समझाने से भी ना समझे जो, वो आतंकी हैं पाकिस्तानी
माफ करता रहा हर बार जो, और कोई नहीं वो हैं हिंदुस्तानी
ऑपरेशन सिंदूर से दुनियाँ ने, नारी की ताकत है जानी
धर्म से ऊपर उठकर उसने, कर्तव्य की लिखी है कहानी
बाज अभी भी नहीं आ रहा, लगता मुंह की है खानी
मांँ भारती पर आंच न आने देंगे, रणबांकुरो ने भी है ठानी
जैसी करनी वैसी भरनी, किस्मत की है यही कहानी
शौर्य देखेगा अब विश्व हमारा, भारत की ये प्रथा है पुरानी-
कुछ आतंकवादियों ने, 28 निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया
हटाया सरकार ने सेना को, तभी तो आतंकियों ने प्रहार किया
गलती किसकी कौन है दोषी, इस पर ना किसी ने विचार किया
अपनी राजनीतिक रोटी सेकने को, हिंदू-मुस्लिम परिवार किया
आतंकवाद, आतंकवाद है होता, होता उसका कोई धर्म नहीं
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, खाता किसी पर रहम नहीं
उद्दंड अत्याचारियों ने, फिर से मर्यादाओं को लांघ दिया
भारत मांँ के दामन में ही, उसकी संतानों को मार दिया
उठो देश के वीर सपूतों, सोने का अब वक्त नहीं
आतंकवाद को मिटा दो धरती से, हो जाए ना देर कहीं
सबक सिखा दो उनको ऐसा , पूस्ते उनकी ना भूल पाएंगी
हिंदुस्तान के वीरों की गाथा, इतिहास में लिखी जाएगी
✍️सरिता महिवाल-
धून - कसमें वादे प्यार वफा सब झूठे है
इतना बता दो हमको बाबा क्यों इतना संघर्ष किया
अधिकार नहीं पहचानते अपने जिनको तुमने समान किया
अधिकारों से वंचित जनता शिक्षा का मोल ना समझती है
जयंती पर तुम्हारी पूजती तुमको, पर तुम्हारी राह पर ना चलती है
संविधान ना पढ़ता कोई खुद कठपुतली बन जाते हैं
इतना बता दो हमको बाबा क्यों इतना संघर्ष किया
कक्षा के बाहर बैठे थे तुम पानी तक को तरस गए
ऊंँच-नीच का भेद मिटाने को परिवार पर भी ना ध्यान दिये
नारी के अधिकारों की खातिर राजनीतिक पद भी त्याग दिया
इतना बता दो हमको बाबा क्यों इतना संघर्ष किया
दुखी बहुत हूं आज मैं लेकिन यही तुमसे कहना चाहता हूं
शिक्षा को हथियार बनाओ, अधिकारों को पहचानो
तुम्हें समाज में सम्मान दिलाने की खातिर, मैंने था संघर्ष किया
इतना बता दो बच्चों मेरे, संघर्ष मेरा कामयाब करोगे क्या?
✍️सरिता महिवाल-
तुम्हारे आने से मांँ-बाप बनने का, सौभाग्य मिला है हमको
तुम दोनों के रूप में ईश्वर से, खूबसूरत उपहार मिला है हमको
ईश्वर से यही प्रार्थना, दुनियाँ की सारी खुशियांँ मिल जाए तुमको
तुम जैसी प्यारी संतानों पर, गर्व है बच्चों हमको
खूब बढ़ो तुम आगे, ना आए कोई मजबूरी
देश समाज की सेवा कर,जीवन सार्थक करना है जरूरी
तुम न रुकना कभी, कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते जाना
जीवन है तो संघर्ष भी है, तुम ना इससे घबराना
मेहनत रंग लाएगी तुम्हारी , होंगे सच सपने सारे
याद बस इतना रखना, कर्तव्यों से मुंह ना मुड़े तुम्हारे
दिल न दुखे किसी का, अभिमान ना आने देना
दुआएं दे सब तुमको, इस काबिल तुम खुद को बनाना
आज तुम्हारे जन्मदिन पर, उपहार मैं तुमको क्या दूं
उमर लग जाए मेरी भी तुमको, दिल से यही दुआ दूं
✍️सरिता महिवाल-
अद्भुत उसमें साहस था, भगत सिंह था नाम
आजादी की जंग में, करा अनूठा काम
करा अनूठा काम, जगाये भारतवासी
फेका सभा में बम, अंग्रेजों की नींव हिला दी
हंसते हंसते उसने, देश पर जीवन वारा
उसके जैसा ना हुआ कोई, वो वीर था न्यारा
जलियांवाले बाग की घटना से,उसका ठनका था माथा
मांँ भारती का लाल वो, ऐसी लिख गया गाथा
बचपन से ही चुना उसने, बंदूक को साथी
कर देगा नाक में दम, गोरो को उम्मीद ये ना थी
उम्मीद ये ना थी गोरो को, जड़ उनकी हिल जायेगी
इंकलाब की लौ, इक दिन आंधी लायेगी
फांसी के फंदे को चूम कर, चढ़ गया फांसी
जाते-जाते इंकलाब, की लौ जला दी-
इन झूठे रिश्तों से, अकेलापन ही अच्छा
नहीं कोई अपना, यह भरम ही अच्छा
जितना मनाया इनको, उतना मानते गर रब को,
जुड़ जाता हमारे भाग्य में, कोई कर्म ही अच्छा
ना कोई उम्मीद, ना कोई शिकवा गिला है
स्वीकार किया, ज़िंदगी से जो भी मिला है
दिखावे की दुनियाँ, नहीं मन को भाती,
बोल दे इससे तो, कोई कटु वचन ही अच्छा
सफल हो कोई तो, अपने ही है गिराते
जरूरत के समय वो, नहीं काम आते
जो करते हैं मुश्किल, जीना जीते जी,
मर जाए अगर, तो कहते आदमी था अच्छा
ये तेरा, ये मेरा, यह सब मोह की माया
मिट्टी में मिल जानी, इक दिन ये काया
नहीं कोई अपना, यहांँ सब नाम के हैं,
टूट जाए जितना जल्दी, यह भरम ही अच्छा
✍️सरिता महिवाल-
मिटाकर मन के तमस को,आओं खुशियों का स्वागत करें।
नव वर्ष की नई बेला में,आओं हम कुछ संकल्प करें।।
ना रहे कोई बच्चा शिक्षा से वंचित,चलो हम शिक्षा का दान करें।
ना रह जाए कोई पेट भूखा,अपने आसपास हम यह ध्यान धरे।।
टूट जाए किसी का मनोबल,ऐसे वचनों को जीवन से दूर करें।
हो किसी को अगर जरूरत हमारी,आगे बढ़कर हम किसी का सहारा बने।।
बच्चों को अच्छे संस्कार देकर हम,देश के लिए अच्छे नागरिक तैयार करें।
टूटे हुए मनोबल को हम, फिर से जोड़ने का काम करें।।
एक दूजे का सहारा बनकर हम,देश की तरक्की में योगदान करें।
इस नए साल में, आओ खुशियों का आगाज़ करें।।
✍️सरिता महिवाल-