गुलाब देने भर से प्यार निभता नहीं, इश्क़ वो तोहफ़ा है जो हर किसी को मिलता नहीं लाख साजिशें कर लो ये फलता नहीं, इश्क़ है रूहानी एहसास हर कोई महसूस कर सकता नहीं
शर्म है कि इन्हें आती नहीं नेताओं को ये भाती नहीं आचार-संहिता लागू है फिर भी जुबान बेकाबू है आँखें मूंद चुनाव आयोग लेटा है लगता चमचा इनका बन बैठा है युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं ये हिंदू-मुस्लिम में व्यस्त हैं विदेशों में जाकर डंका बजाते हैं जमीनी हकीकत पर पर्दा गिराते हैं बड़ी बड़ी योजनाएं लाते हैं जनता को मिलने से पहले खा जाते हैं गरीबों को और गरीब बनाते हैं अमीरों को ये गले लगाते हैं खुद फकीर से अमीर बन जाते हैं जमीर अपना बेचकर खा जाते हैं शिक्षा पर ताला लगवाते हैं सवालों से घबराते हैं आना ना तुम इनके झांसे में ये भाई-भाई को लड़वाते हैं ✍️सरिता महिवाल