कहाँ जटायु रावण से अब लड़ता है
नहीं लखन अब राम के पीछे चलता है।
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औरत के माथे में लगें बिंदी भी
अपनी मर्यादा नही भूलती
औऱ ये समाज उन्हें
मर्यादा में रहना सिखाती हैं-
आइए, सहिष्णुता (सहनशीलता), संयम एवं वाणी की मर्यादा का महत्व समझते हैं......
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मैं !
मर्यादाओं की धार कलम सी तलवार ,
अपने साथ ले कर चलती हूँ....
पार करती हूँ घर की दहलीज,जब भी ,
अपने संस्कार ले कर चलती हूँ....
मैं !
माँग में सिंदूर पति के सात वचनों का ,
काजल में कुल की आन ले कर चलती हूँ....
बेबसी की चूड़ियां कलाइयों में नही ,
आत्मसम्मान की शान ले कर चलती हूँ.....
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समुद्र की तरह ,
बेप्रवाह ....बहते-बहते ,
मानव भुल गया है ....
वो सीमा के अनुशासन को ,
फंस गया हैं वो भंवर में ....
जहाँ वो खुद को ,
खोखला कर रहा .....
जहाँ जन्म दे रहा ,
मानव त्रासदी को ...
जो कर रहा विलुप्त ,
इंसान से उसकी ,
इंसानियत को ....
और जन्म दे रहा ,
एक मर्यादा रहित ....
समाज को !!!
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पार की हैं सारी हदें,
तोड़ दी है मर्यादा;
मेघ भी हैं आज गरज रहे,
"दामिनी" ने खोया है आपा।
लग गए हैं सवालिया निशान कई,
पाखंड से भरे नारी-पूजन पर;
क्षुब्ध खड़ी है "देवी" आज,
देख समाज का दोगलापन;
धधक रही है क्रोधाग्नि,
भाप संक्षित हो अश्रु बन पड़े हैं;
तमतमा उठी हैं इंद्रियाँ सारी,
सूर्ख लाल नयन जवाब के इंतज़ार में अड़े हैं;
ताव में उठी हैं भौहें,
लड़खड़ाते लबों पर सिर्फ़ सवाल हैं -
"भंग की है आखिर मर्यादा किसने?
कटघरे में खड़ा कौन बेगुनाह है?"-
इज्ज़त सिर्फ तुम्हारी ही नहीं है।
कुछ मर्यादा तो हम भी रखते हैं।
तुम तब तक चीख सकते हो।
हम जब तक खामोश रहते हैं।-
पुराने समय में स्त्रियाँ
दरियाँ बनाते हुए ही सीख
गई थी अपने चरित्र पर
मर्यादा का ताना बुनना,
उन्हीं दरियों को
बिछौना बना पुरूषों ने
लांघी अपनी मर्यादा!
पुरूषों ने नहीं सीखा
सिंचाई करते समय खेतों के
नालों व क्यारियों पर
बांध बनाने से नेत्रों व मन
पर बांध बनाने का
गुर?-