S bhadrecha   (©Sbhadrecha)
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Joined 14 August 2019


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Joined 14 August 2019
7 NOV 2023 AT 10:35

कोई हल नहीं सूझता है सोच के अलावा भी,
कोई लब नहीं खुलता है शोर के अलावा भी,
कितनी बार किए हैं मैंने ये झूठे दावे कि
मेरा दम नहीं घुटता है मौत के अलावा भी!

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2 NOV 2023 AT 19:38

⚘️ मुझे बहाने पसंद नहीं
और मैं थोड़ी सी ज्यादा निष्पक्ष हूँ

पर तुम्हें पता है तुम क्या हो?
पूरी तरह कृत्रिम!

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2 NOV 2023 AT 19:33

किसी की खुशियों से जलकर हम क्या ख़ाक जियेंगे
नहीं दायाद किसी के बेघर भी ठीक- ठाक जियेंगे !

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29 OCT 2023 AT 16:17

कभी कभी तो छुप के मुस्कुराना पड़ता है
कभी कभी तो दबके मुस्कुराना पड़ता है

यूँ के मैं तिलमिला के रो नहीं पाती जब भी
तभी मुझे खिलखिला के मुस्कुराना पड़ता है

कितने सवाल उठते हैं यार मुस्कुराहटों पर
मुस्कराहटों को तो मरके मुस्कुराना पड़ता है

लोग जब मार डालते हैं मेरी मुस्कराहट को
मुझे तब दोबारा जीके मुस्कुराना पड़ता है

अपनों की खुशियों में नहीं मेरा हिस्सा मग़र
सबकी खुशियों के सदके मुस्कुराना पड़ता है

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11 JUL 2022 AT 22:13

तुम्हारी छवि जैसे इंद्रजाल बिछाती है
प्रार्थना-आराधना दोनों ही रह जाती है

मेरी दशा का तुम्हें मात्र ये ही आभास
जो भी ये उपासिका कह नहीं पाती है

संसार के जैसा चढ़ावा न वाणी में माधुर्य
जोगन का धन सत्य है हृदय चढ़ाती है

मन में मेरे भोले तेरी प्रतिमा भोली-सी
छू लूँ तो मुस्काती है भूलूँ तो मुर्झाती है

मुझे ज्ञात है तुम्हें आता है स्वाँग रचाना
आत्मा-आत्मा में समाहित हो जाती है!
©sbhadrecha




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7 JUL 2022 AT 16:39

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5 JUL 2022 AT 18:05

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8 JUN 2022 AT 15:18

देकर ज़ालिम ज़माने को, फिर उसे अमर कर जाती है,
बच्चा जिंदा रह जाता है और माँ मर जाती है!

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8 JUN 2022 AT 13:22

विभीषिका से
आत्मसात मेरे हृदय
संताप से ठूँठ हुए,
माना ये प्रहार तुम पर है
तक्षण है तुम्हारा,
ये वासना का आकर्षण है
आत्मा का श्रेय थोड़े है
अग्नि के अंगार हैं
छल हैं सारे
हृदय पर बल है तुम्हारे
पर जानों तुम ये कि
नेत्रों का घर्षण प्रेम थोड़े है!

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7 JUN 2022 AT 17:13

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