RoHit Singh Baghel   (रोHit)
3.0k Followers · 6.6k Following

read more
Joined 20 November 2017


read more
Joined 20 November 2017
6 OCT 2024 AT 14:56

समेट लेता होगा स्याह रंगीन परेशानियों को खुद में,
वर्ना इंसां भी कहां चाहता है आंख बंद करके सोना!

-


28 JUL 2024 AT 12:15

भूल जाते हैं लोग अक्सर एहसान सांसों का खुद पे
इक सुबह आंख देर तक क्या लगी, आफ़त हो गई !

-


22 APR 2024 AT 0:45

पाषाण जो मोह रहित है,बंजर है,बांझ है आज वो साक्षी बना है प्रेम का ,दाम्पत्य का और सृजन का,
और स्त्री जिसमें उर्वरता है,‌जो कर सकती है सृजन प्रेम का,मोह का, वो पाषाण बनने को मजबूर है।

-


16 APR 2024 AT 0:19

आइना वही था
चेहरे बदलते रहें।

-


21 JAN 2024 AT 22:59

।।जय श्री राम ।।

चंचल चितवन चकोर चरण, लेकर प्रभु निज धाम आए ।
रघुरायी सदा अमर रहे, रघुकुल के दीप राजा राम आए ।।


हो गया दूर तमस जग का, वर्षो का धर्म युद्ध जीत गए ।
झूम उठा अवध उत्सव में, नर नारी में नव प्राण आए ।।


तर गए इहलोक के वासी, नहीं रही चाह भवसागर की ।
हो जायेगी पार तरणी , जब केवट भव पति राम आए ।।


पापी पाहन पथ के हो गए अलग, हुए मुक्त पाप से सब ।
जब पुण्य चरण स्पर्श लेकर, मां अहिल्या के राम आए ।।


छंट गए शूल राह के स्वयं खुद से, प्रभु के वंदन में आज ।
धन्य हो गए धरा के सब, जब मां शबरी के प्रभु राम आए ।।


नाच रहे उत्सव में अवध वासी, हो कर के सब मस्त मगन ।
हुई धन्य लेखनी तुलसी की, जब बाल रूप में प्रभु राम आए ।।

-


19 JAN 2024 AT 13:22

छोड़ जाता होगा जरूर कोई, अपने मोती और खारापन उसमे,
वर्ना आसां कहां होता किसी के आंखों का यूं सागर हो जाना!

-


11 JAN 2024 AT 18:57

किसी को कुछ तो किसी को खास मिला,
किसी को मंज़िल तो किसी को आस मिला।

-


31 DEC 2023 AT 10:26

ये कुहरा नहीं शौक–ए–दीदार पे कुदरती पर्दा है
दिसंबर फिर बेचैन हो उठा है जनवरी के लिए !!

-


23 DEC 2023 AT 13:59

एक ही तने के एक ही शाख से जुड़े हैं और पोषित हैं
तेज़ाब चेहरे में पड़े या दरख़्तों पे, ज़ख्मी हम ही होंगे!

-


17 DEC 2023 AT 9:52

कलम,कनस्तर,किताबों का नया कारोबार चाहिए,
नई सरकार चाहिए ना अब कोई रोजगार चाहिए।

कई शख्स मौजूद है यहां कुनबे-ऐ-शातिर में जनाब,
बंद रखिए किबाड़‌ ना‌ अब घर कोई अखबार चाहिए।

साहिब-ए-फरमान ज़ारी हुआ है कल अहले-कौम में,
परेशानियां लेकर घूमिए ना अब कोई सुखनवार चाहिए।

इक उंगली ही काफी है बेगुनाह को मारने के माफिक,
खाम़ोश रखिए हाथों को ना अब कोई हथियार चाहिए।

निज़ाम ने लूट रखी है वाह वाही सारी खुद-बा-खुद से,
बैठिए जनाब शेर लेकर ना अब कोई अश-आर चाहिए।

-


Fetching RoHit Singh Baghel Quotes