मछली भी तो पानी में कभी घुटती होगी ज़रूर!
जैसे तुम मेरी ज़िंदगी हो कर भी नहीं हो!!-
किसी भी क्षण
फँस जाऊँगी मैं— जाल में
बटुली भर भात
और.... मैं उनके मुँह का निवाला
कहाँ तक पहुंचा होगा
मेरा— यकृत-फेफड़ा-श्वासनली
कहना मुश्किल है....
किन दांतों के बीच
अटका पड़ा होगा मेरा हृदय
नहीं मालूम.....
और...
इस पर तो
.... कविताएँ भी चुप हैं...।
कविता ✍🏻
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मेरे संग रहकर, वो नाराज़ रही जिंदगी से,..
समन्दर में मछली, मैं किनारे पर रेत बना रहा।-
मछलियाँ कैसे करें बेहतर दिनों का रद्दे अमल
हर पंजे में खंजर यहाँ, है खून में भीगा कमल-
# "जिस प्रकार एक मछली जल के
अभाव में
अपने प्राण त्याग देती है,
उसी प्रकार
कुछ कविताएं भी
मृतप्राय सी प्रतीत होती हैं,
जबतक उन्हें
निःस्वार्थ भाव से
न लिखता हो कोई कवि!
कविताओं की जीवन लीला
कवि के मनोभावों पर ही
निर्भर करती है..!!"¥-
मछली जा चढ़ी पेड़ पर
बोली अब न नीचे आऊँगी
पहले साफ कराओ पानी
नही तो मै मर जाऊँगी
बना घोसला पेड़ों पर
वनसुग्गों संग रह जाऊँगी
गंदे कचरे वाले जल में
बोलो कैसे जी पाऊँगी
सुन्दर-सुन्दर पंखों वाली
कीचड़ से मैं सन जाऊँगी
गंदे पानी में रह कर
जल की रानी कैसे कहलाऊँगी..
कविता 🌱
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मुझे लगता था कि हम मछवारे हैं, और
जीवन के समंदर में
मछली रूपी इच्छाओं को पकड़ने की
फ़िराक में लगे हैं।
मालूम चला कि हम तो बस
मछली पकड़ने वाली रॉड हैं।
मछवारा तो कोई और ही है।
समंदर उसका है, मछलियां उसकी हैं।
और तो और, ये रॉड भी उसी की है।
जब काफी समय तक भी समंदर में रहने पर
मछली नहीं मिलती, हम समंदर को कोसते हैं, मछलियों को कोसते हैं।
और उस रॉड को भी कोसने लगते हैं।
मगर कभी मछवारे के पास जाकर,
फिशिंग रॉड को सही जगह डालने की
प्रार्थना नहीं करते।-