QUOTES ON #भयानक_रस

#भयानक_रस quotes

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24 JUL 2019 AT 19:46

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24 FEB 2021 AT 15:17

अँधेरी स्याह रात में काम से, निकल पड़ी एक नार
जानती न थी इंसानी भेष में भेड़िये रहते हैं खूंखार

जी रही थी सन्नाटे को तितरो की भयावह आवाज
मानों बता रही न आगे बढ़ घोर अनर्थ होगा आज

डरी सहमी सकूचायी दबे कदमों से आगे बढ़ती रही
पर कहीं लुट जाए ना अस्मिता इस बात से डरती रही

तभी बढ़ते कदमों के पीछे कदमों की आहट दी सुनाई
क्यों इस दृश्य को देख कर खामोश रह गयी तू खुदाई

आज से पहले आई ना थी जीवन में इसी स्याह रात
जिसमें दरिंदों को नज़र न आये एक अबला के जज्बात

नोच नोच कर खाया उसके जिस्म को उन भेड़ियों ने
रूह तक भी नोच डाली, उस नारी की उन दरिंदो ने

देख यह दृश्य भयानक, मानव अंधेरा भी था थर्रा रहा
चीख चीख उसकी दयनीय दशा वो था सबको बता रहा

ना बचा जिस्म उस अबला का और रूह भी थी मर गयी
लिखते लिखते इस कुकृत्य को मेरी स्याही भी बिखर गयी

हे विधाता देना मोत पर किसी को ऐसी काली रात न देना
ना दे ख़ुशियाँ कोई बात नहीं पर दर्द की ऐसी सौगात न देना

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7 MAR 2021 AT 21:04

आकाश में बिजली कौंधी थी
धरती का दिल थर्राया था
काली घनी अंधेरी रात में
कौन वो अनजान सा साया था
बरसने लगी जब बारिश
मन और घबराया था
दिल ज़ोरों से काँप उठा था
चारों और सिर्फ़ सन्नाटा था
आगे मैं कदम बढ़ाऊँ तेज़
वह उतने ही पास आया था
पसीने से तर हो गई थी
गले में जैसे कोई फंदा था
पीछे जो मुड़कर देखा
एक पुलिस का बंदा था
जान में जान आयी मेरे
बस डर था मेरा जो अंधा था

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25 FEB 2021 AT 0:20

सुनसान रास्ता भयानक अंधेरा,
अकेली लड़की दूर था बसेरा।

फ़स गयी थी रात के,भीषण अंधकार में ।
होने को अभी बहुत दूर था सबेरा ।

घर भी था पहुँचना बेहद ही जरूरी ,
रास्ता भी तो नही था अब कोई दूसरा।

ख़ुद ने ही ख़ुद से किया फिर वायदा,
नही रुकेंगे अब क़दम चाहें अँधेरा हो कितना भी गहरा।

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24 FEB 2021 AT 18:24







👽भयानक रस 👽

(अनुशीर्षक में पढ़िए )
⬇️













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7 MAR 2021 AT 8:39

** भयानक रस**
प्रकृति के भयंकर प्रकोप को देखकर
मन विचलित हो उठता है हर किसी का।

आया सैलाब ऐसा गाँव के गाँव बह गये
पक्के घर भी ऐसे गिरे जैसे बने रेत का।

हहराती हवायें, बड़े पेड़ भी उखड़ रहे
बहते जानवर, दिखते थे दूर-दूर तक।

कितने प्रियजन बिछुड़ गये हाथ से हाथ
विवश था मानव सिर्फ हाथ मलने तक।

ऐसी भयावह मंजर देखा प्रत्यक्ष जिसने
नींद में ख़ौफ़ से सोया न कई रात तक।

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25 FEB 2021 AT 13:07

Vishaal shashwat ji







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7 MAR 2021 AT 8:23

भयानक रस
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जिंदगी और मौत को बहुत पास से उलझते देखा
आँखों में जिंदगी जीने की चाहत देखा
अपनों को रोज सिसकते देखा
एक अंजाने भय से लड़ते देखा

मौत को जिंदगी से जीतते देखा
और फिर सब राख होते देखा
पंच तत्व में विलीन हो जाते देखा
जिंदगी को फिर से पाठ पढ़ाते देखा

वो भयानक दृश्य जो कोरोना में सबको डरते देखा
अपने ही घर में मौत को आते देखा
एक विचित्र सा भय मन को विचलित कर रहा है

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25 FEB 2021 AT 1:51

सरसराहट सी होने लगी भयावह सी वो रात थी
निकली अकेली घर से स्याह वो काली रात थी

सुनसान सी राहों पर निकली कुछ दूर वो आगे चलकर
अनिष्ट के डर से पग चल रहे थे तेज उसके निरंतर

वीरां सी थी ख़ामोशी इतनी की साँसों की ध्वनि भी सुनाई दे
खोजें पथ पर दूर तलक कही कोई भी उसको दिखाई ना दे

सामने से आने लगे कुछ डरावने से बदमाशों का काफ़िला
पसीने से तर हो गया बदन, चेहरा पड़ गया उसका पीला

हड़बड़ाहट में फिसला पैर, चुनरी फंस गई कँटीली झाड़ियों में
छुपी रही फिर भी सुबह तक अपनी इज्ज़त की रखवाली में

सुबह होते ही उसने रास्ता अपने घर का कैसे भी खोज निकाला
जंगल की काली मनहूस रात के डर ने मन में था घर कर डाला


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25 FEB 2021 AT 13:22

Shlok shandilya ji








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