सब कुछ अव्यक्त सा भी, व्यक्त हो रहा है। मां का ममत्व, आंचल में सिमटा हुआ भी, छलक रहा है। बहन का स्नेह, उलहनो में उलझा हुआ भी, छिटक रहा है। पिता का प्रेम, दुखों को समेटे हुए भी, झलक रहा है। देखो, तुम स्वयं भटक रहे हो, दोस्त! भटकाव दृष्टिगोचर हो रहा है।
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