स्वाति मिश्रा   (©स्वाति मिश्र)
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Joined 20 October 2017


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अस्तांचल को जाता जीवन

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मन, निर्वात में है

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जीवन एक प्रयोगशाला है।
~स्वाति

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लौटने लगोगे जब इक उम्र गुज़ार कर,
कहो, दुबारा इश्क़ करोगे हमसे

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काली सफेद ये रात...
जैसे कोई जवाबी खत पढ़ रही है,
जैसे सुना रही है तारों को मेहबूब का किस्सा,
जैसे गा रही है विरह अपना,
जैसे उतार रही है श्रृंगार अपना
और बावली हो रही है उस पायल को
देखकर की कितनी सुंदर है....!
सच रात बहुत गहरी है,
काली है;
रात, हिज्र की है
जैसे मोतियों को थाली से फेंक
कर उजाला कर रही है
पर जाने कहां
खो जा रहे है ये मोती...।
सूख जा रहे हैं जैसे
सूख जाते है इंतजार में आंसू
रात, दीवानी है बेचारी
काली सफेद ये रात...
जैसे कोई जवाबी खत पढ़ रही है,
©स्वाति'बूंद'

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कितनी बातें सच होती हैं
कितनी बातें गढ़ी हुई..
बातों से ही प्रेम हो गया
कितनी बातें सजी हुई
-©स्वाति 'बूंद'

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वो रास्तों का चलना
वो किसी गली में ठहरना
वो हाथ थमाने को तरसना
क्या तुम्हें याद है
वो सूनी सड़क का सफर
वो शाम को ढ़लता अन्धेरा
वो बेमतलब की बातों को बटोर कर
दिन भर शाम का इन्तजार करना
वो ठंडी शाम में बातों का अलाव....
वो सूनी सड़क का सफर
क्या तुम्हें याद है
अब तो शामें यादों में गुजरती हैं...
अब तुम सपने में मिलने आते हो...
वो गलियाँ, वो रास्ते, वो शामें...
अब वजूद में नहीं... यादों में सिमट के बैठी हैं...
क्या तुम्हें याद है
वो सूनी सड़क का सफर...
-स्वाति मिश्रा


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मैने कहा,
'इश्क है तुमसे'
और ताउम्र की मजबूरियाँ, इक
ख़ामोशी में लिपट गई..।

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हवा में तैर रहा बसंत.
आओ सखी अब उड़ चले एक संग...
हवा में तैर रहा बसंत.
रीति के बंधन तोड़,चल अब बनाये रंग
हवा में तैर रहा बसंत.
आओ सखी अब उड़ चले एक संग...
-Swati 'Boond'

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Bikhari hun mai jiski yaadon mein
Yakeen kro....
Sametega vo hi mujhe ek din paaglon ki trah

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