जिन हाथों ने कभी, नन्हे क़दमो को
चलना सिखाया था,
दुनिया की भीड़ में, उंगलिया थामे जिनकी
खुद को भीड़ में भी महफूज़ पाया था,
छोटे छोटे अनगिनत निवाले, जिनके हाथों से खाये,
न जाने कितनी ही ख़्वाइशें, अपने जिनसे मनवाये,
खुद की तक़लीफ़ में, जिन्हें हमेशा रोता पाया,
खुशियों में भी उनके आंसुओ को न थमता देखा,
हर मुश्किलों में जो सहारा बनें,हिम्मत हरपल जिन्होंने दिया,
बड़े प्यार से उन्होंने अपना हर फ़र्ज़ अदा किया,
वो "माँ-बाप" आज बेसहारा क्यों हैं ?
क्यों अपने घर के बजाय, किसी वृद्धाश्रम में हैं,
जब उनके लड़खड़ाते क़दमो को सहारे की जरूरत पड़ी,
कांपते अल्फ़ाज़ों में उनके क्यों प्यार और भरोसे की कमी दिखी ?
-aRCHANA
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