वक्त जैसे हाथ से फिसल रहा है,
मानो अब सब कुछ पीछे छूट रहा है !!
बैचेनी, डर जैसे एक घर बन रहा है !!
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ख़ुद तो गीली होती है !!
दूसरों क़ी मुस्कुराहट क़ी बजह बनती है !!
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मैं बेबाक हवा सी हूं ,
चंचल पंछियों की तरह गूंजती हूं,
हर पल चहकती हूं,
बारिश का रह पल जीती हूं,
चाँद को घण्टो तक निहारती हुई ,
मैं हर पल महकती हुई आई हूं,
मैं रोकर भी हस्ती हुई आई हूं,
छोटी –छोटी ख्वाहिशो पूरा होता देख जीती आई हूं,
बस डर है,
ये सब है, पर कब तक है!!-
मैं उलझी सी हूं, संभाल तो लोगे न?
जल्दी उदास भी होजाती हूं, मना तो लोगे न?
वैसे तो हंसती रहती,
पर रो भी जल्दी जाया करती हूं, पास रहोगे न?
कभी ख़ुद से भी नाराज हो लेती हू, क्या करू इसी ही हू, साथ तो दोगे न?
वैसे तो बड़ी बड़ी बातें भी संभाल लेती हू,
पर छोटी –छोटी बातो पर टूट जाती हू
हमेशा साथ तो दोगे न?
क्या करू बस इसी ही हूं मैं!!-
एक बहुत बड़ा तोहफ़ा मांग लिया हमनें उनसे,
तोहफ़े मैं उनका वक्त मांग लिया उनसे!!-
अल्फाजों का सिलसिला जैसा था वही है
बस अब अल्फाजों ने लिहाज़ मै रहना सीख लिया है!!-
परिंदों की तरह उड़ने से क्यों डरते हो ,
एक उड़ान भरने की देरी है
जमीन तो है ही तेरी ,
बस आसमा चूमने की बारी है !!-