ये इश्क़ का दर्द ठहर क्यों नहीं जाता ये गुस्ताख दिल क्यों तनहाइयों को अब मिटा नहीं पाता मोहब्बत बेवफा से करके जब खाई है ठोकरे तो फिर क्यों उस बेवफा की यादों के महफिल सजाता
जिंदगी भी अब तुझसे यू रुठी लगती है की खुशियों की डोर तुझ से अब छूटीं लगती है तेरे ही हाथों तेरी किस्मत फूटी लगती है जिसे पा ने की आश में खोया तुने मुझे वो आश आज टूटी लगती है और अब करीब आके यू प्यार न जता ए बेवफा ये मुहब्बत की बातें अब मुझे झूठी लगती है
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