-:लघु कथा:-
उस दम्पत्ति के दो बेटे थे,
अब शहर में उनके अपने-अपने तीन मकान हैँ......-
बड़ी देर से हमारा-तुम्हारा कर रहे बेटे।
लगता है जमीन का बँटवारा कर रहे बेटे।।
माँ किसी के हिस्से में आई या नहीं।
या फिर माँ से भी किनारा कर रहे बेटे।।
अच्छा क्या हुआ उस बाप के आदर्शों का।
सुना है दौलत से पलटवारा कर रहे बेटे।।
नहीं मैं नहीं तुम ही रक्खों इन बुढ्ढों को।
बैठे आपस में यही इशारा कर रहे बेटे।।
अमीरी का लिबास पहने फिरते है बस ये।
ख़्वाब जीते है,ख़्वाबों से गुजारा कर रहे बेटे।।-
चांद सी होती है बेटियां
फिर भी ख्वाइश होती है बेटों की
गलती करे बेटे घर में रहे बेटियां
इज्जत लूटे बेटे इज्जत जाती है बेटियों की
-
उस माँ पर क्या बीती होगी
मर मर कर वो जीती होगी
अपनी छाती से सींचा जिनको
उन बेटों का खून जब पीती होगी-
कांपती हथेलियों से जब उसकी नाजुक उंगलियाँ थामी मैंने,
फिर करीब महसूस किया उस बेटे को जो दूर जा चुका था !-
वो आंसू खुशी के थे, या सूनेपन का छलकना था,
जब ओहदा बढ़ गया था बेटे का शहर बदलते ही !-
बधाई हो..
रोहतक, हरियाणा से ऑनर किलिंग की ख़बर आ रही है.
दिन दहाड़े क़त्ल कर दिया😌
बेटियां सेक्स ऑब्जेक्ट है, मां बाप भाई चाचा ताऊ ही बताएंगे कि किसके साथ सोना है उसे, इस से आगे पीछे तो कोई वजूद ही नहीं लड़की होने का.. !!
सही करते हैं वो लोग जो गर्भ में मारते हैं , क्योंकि जो बच जाती हैं उनका हश्र बाद में ये हो जाता है, कभी बेटी मारते है, कभी उनकी पसंद के लड़के मार दिए जाते हैं. !!
बेटियां औलाद नहीं होती, सेक्स का सामान है, घरवाले अपनी मर्जी से तय करेंगे कि किसको देना है उसे !!
😡😡😡😡😡-
कोई परिवार कितना शिक्षित और स्वतंत्र स्वभाव का है अगर ये आप सिर्फ उस परिवार के "बेटों" के पढाई और तरक्की से बयां कर रहे तो आप बिल्कुल ग़लत बयां कर रहे,
अगर बयां करनी है तो उस परिवार कि "बेटियों" कि
पढाई और तरक्की देखिए क्यूंकि "सच्चाई"
तो तब ही पता चलेगी...!!!-
बेटी:
✍🏻जब चीत्कार रूह से आती है,
तो मंजर बदल जाते है,
चीख़ में बदलती है सिसकियाँ शब्दों की,
जब बेटी पर कलंक ओढाये जाते हैं,
सभी अंतर नजर आते है,
जब एक बेटी पर सामाजिक तौर-तरीकें थोपे जाते है,
महज इज्जत-प्यार की एक भूखी बेटी को,
बुलंद आवाज़ के लिए हिम्मत कैसे हुई जैसे भोग सुनाए जाते है।
बेटे को कोई कुछ नही कहता साहब यहाँ
वो बेटी है ना-
इसलिए उसे सामाजिक मर्यादा के पाठ पढ़ाये जाते है।-