बहुत बना ली परियाँ, अब फिर से शक्ति स्वरूपा बनाएं
म्यूज़िक क्लास ना भेजें भले, पहले जुडो कराटे सिखाएं
अरे!अंकल के पास जाओ बेटा,ऐसा व्यवहार ना निभाएं
डरती हुई सुरक्षित है गुड़िया, फ्रेंडली नहीं डरपोक बनाएं
जॉनी जॉनी रटवाने से बेहतर, अच्छा बुरा स्पर्श सिखाएं
प्रतिघात यदि करना पड़े, भेड़ियों के नाज़ुक अंग बताएं
हर जगह हर बात में, उचित नहीं डटे रहना भी समझाएं
कहें उन्हें, जमकर एक वार कर,तुरंत वहाँ से भाग जाएं
महंगा मोबाइल बाद में लेंगे, छोटी कटार पहले दिलवाएं
परफ्यूम से सस्ता आता है, पेपर-स्प्रे हमेशा साथ रखवाएं
फ़िल्मी भांड बिकाऊ हैं, इतिहास के असली हीरो बताएं
नींव मज़बूत हो बचपन से ही, कश्मीर का किस्सा सुनाएं
सिंड्रेला की कहानी बहुत हुई, वीरगाथा पद्मिनी की सुनाएं
ना छल सके बहरूपिये,धर्म के प्रति वो स्वाभिमान जगाएं-
बेटियां अपनी घर की इज़्जत मान मर्यादा होती है
जिस आंगन में खेली उस आंगन की कर्ज़दार होती है
रखकर सबका ख्याल अपना स्वभिमान रखती है
त्याग, बलिदान, सहनशीलता की वह मूरत होती है
अपने परिवार की रक्षा करना उसका कर्तव्य है
अपने कुल की लाज,सम्मान रखना उसका धर्म है
दुख सहकर चहरे पर मुस्कान रखने वाली बेटियां
अपने संस्कृति, संस्कारों पर लांछन नहीं लगने देती है-
इस दुनिया में रिश्तों का अजीब सा अफसाना है
जिन्हें नाजो से पाला हमनें ख़ुद करना बेगाना है
इन बेटियों को अपने ही घर को छोड़कर जाना हैं
कितने बापों को ये फर्ज़ मज़बूरी में ही निभाना है-
कल आज और कल हम जिंदा है,
दस्तूर बेटियों का जिन्हें मिला वो जिंदा है,
नही बदलता तो तख्त बेटियों के प्यार का,
आज तुझ से जिंदा है कल तेरे लिए जिंदा है बेटियां!!-
वजूद पिता ने भी किस तरह से खंगाला है
बिगड़ें बेटें है औऱ उसने बेटियों को संभाला है-
तू लड़की है,
ये दुनियां मुझे रोज याद दिलाती है
ये जींस, शर्ट पोशाक लड़की पर नहीं भाती है
ज़ाहिल लोग हो जो कहते हो कम्बख्त बेटी हुई है
ये क्यों नहीं कहते की ऐ खुशनसीब तेरे घर बेटी हुई है
क्या तुम्हें नहीं पता,
एक लड़की कितना सम्मान बढाती है?
ज़रा गौर करो उसके किरदाऱ पर,
वो किसी तरह अपना किरदाऱ निभाती है
एक बेटी, बहु, माँ बन कर अपने सारी रिश्ते निभाती है
अपने सारे सपने किनारे करके देखो वो तुम्हारे सपने सजाती है
ज़नाब युहीं नहीं बेटियां भवानी कहलाती है-
किसी की पगड़ी ,कदमो ना आये।
सुकूँ की रात ,अब रूठ कर नही जाये।।
खजाना होती है बेटियां माँ बाप के लिए।
कोई जाने अनजाने में ,ना उनका दिल दुखाये।।-
✪✪ बेटिया ✪✪
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं
उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं
सहमी-सहमी हुई रहती हैं मकाने दिल में
आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं
टूटकर ये भी बिखर जाती हैं एक लम्हे में
कुछ उम्मीदें भी घरौंदों की तरह होती हैं
आपको देखकर जिस वक़्त पलटती है नज़र
मेरी आँखें , मेरी आँखों की तरह होती हैं
बाप का रुत्बा भी कुछ कम नहीं होता लेकिन
जितनी माँएँ हैं फ़रिश्तों की तरह होती हैं-
जब डगमगाई थी बेटी कदम चलते हुए पहली बार ,
मैंने देखा तस्वीर को .... बदलते हुए पहली बार ...
नन्ही उंगलियां चूम रही थी जब माटी आंगन की ,
मैने देखा तकदीर को .... बदलते हुए पहली बार ...
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