तेरी वजह से बने थे, दुश्मन बाज़ार में
आज तू नहीं मगर, है दुश्मन बेकार में-
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं-
क्या कहेंगे लोग,
ये सोच सोचकर अपनी ज़िंदगी को यूँ मुज़्महिल ना बनाओ,
करना है गर जिंदगी में कुछ,
तो उठकर दो क़दम तो आगे बढ़ाओ..!!
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मुज़्महिल -- बेकार-
सुनो ये दुनिया इंसानों से नहीं...पैसो से चलती हैं..
.पैसा तो प्यार....वरना सब बेकार 😊-
घर कर गई मोहब्बत आसार लग रहे हैं
मुझको सभी के चेहरे बेकार लग रहे हैं
ख़ुद्दाम थे कभी जो हर हाल में ख़ुदा के
वो लोग अब ख़ुदा के अवतार लग रहे हैं
हरकात दिल में होंगी वो इश्क़ ही से होंगी
क्यों बे-नक़ाब चेहरे बीमार लग रहे हैं
मक्तूब भेजकर तुम कुछ हाल जान लेना
मुझको तुम्हारे आशिक़ ख़ुद्दार लग रहे हैं
इमदाद दिल से करते तो लोग भी समझते
धोखा-धड़ी के हर दिन बाज़ार लग रहे हैं
लहजा अभी तुम्हारा सुधरा नहीं है 'आरिफ़'
अल्फ़ाज़ फिर अना के औजार लग रहे हैं-
हालात ज़िन्दगी के बेकार हो गए क्यों
बे-चैन होते-होते बे-ज़ार हो गए क्यों
अब मात भी नहीं होती और हारते हैं
पत्थर भी रास्ते के मिस्मार हो गए क्यों
मशहूर है मोहब्बत मय-ख़्वार ज़िन्दगी में
आशिक़ यहाँ वहाँ फिर अख़बार हो गए क्यों
हर साँझ कुछ परिंदे घर लौट ही रहे हैं
पर सुबह पंख उनके बीमार हो गए क्यों
हर वक़्त कोई 'आरिफ़' तुझसे नहीं मिलेगा
फिर आज लोग इतनी दरकार हो गए क्यों-
मिरे- काफ़िले में मुझे,
सबसे बेकार समझा जाता था,
मैं आखिर,देख-सुन,बोल पाता था।-
मैं शौख शायरी का रखता हूं,कोई शायर थोड़ी हूं,
लिहाज़ करता हूं तुम्हारा,कायर थोड़ी हूं।
नाराज हो मुझसे,पर दिल से निकाल थोड़ी ना पाओगे,
हकदार है इस दिल के हम,कोई किरायेदार थोड़ी हूं।
रिश्तों को बचाने में कुछ बाते नजर अंदाज कर जाते है,
समझदार हूं,कोई लाचार थोड़ी हूं।
जरूरत पड़ने पर काम आऊंगा,
जो समझते हो तुम मुझे,उतना बेकार थोड़ी हूं।
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पत्थर नहीं हूँ दीवार नहीं हूँ
तेरे रास्ते का मैं खार नहीं हूँ
इश्क़ है तुझसे इश्क़ है इश्क़
मैं कोई जहनी बीमार नहीं हूँ
ये मोहब्बत ही है खुद्दारी मेरी
मोहब्बत में मैं खुद्दार नहीं हूँ
दुनिया की नज़र में खटकता हूं
दुनिया में हूँ दुनियादार नहीं हूँ
मेरी गम-ख्वारी क्यों करे कोई
मैं किसी का गम-ख्वार नहीं हूँ
तुम्हारी तोहमतें सब मंजूर मुझे
बस यार मैं बदकिरदार नहीं हूँ-