Shayra Kom   (Shayra Kom)
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Joined 20 March 2021


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8 MAR 2024 AT 20:03

उसकी इज्ज़त को इज्ज़त दर्द को दर्द समझता है
बहुत खुशनसीब है वो औरत जिसे मर्द समझता है

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6 MAR 2024 AT 22:14

बहुत इंतजार है तेरे लौट आने का
यही हसरत है इस दिल दीवाने का

तेरे कदम एक बार पड़े दिली आरजू
रौनक बढ़ जाए मेरे गरीब खाने का

भूलाना चहोगे हमें और याद आयेंगे
भूल जाओ ख़याल हमे भूल जाने का

ज़माने के डर से हो ख़ामोश कबसे
देखना रुख बदल जाएगा ज़माने का

जो भी खता हुई मुझसे माफ़ कर देना
बहुत अफसोस है तेरा दिल दुखाने का

उठाना ही पड़ता है कलम शायरा 'को
नहीं आता दूजा तरीका ग़म मिटाने का

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9 JUN 2022 AT 15:41

नींद टूट गई और ख़्वाब टूट गया
रात मुझपे कैसा अज़ाब टूट गया — % &

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2 JUN 2022 AT 20:11

अज़ब इश्क़ मेरा अज़ब इम्तिहान लेता है
मेरा ही कत्ल करके मेरा ही बयान लेता है
कितना वार कितना वजूद लहूलुहान हुआ
मेरे वजूद पे सारे जख़्मों के निशान लेता है — % &

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29 MAY 2022 AT 22:41

लिखने का हुनर मेरा मुझे बदनाम कर गया
जो दिल में छुपा रखा था सरेआम कर गया — % &

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25 MAY 2022 AT 10:39

जितना मेरी जान मैं तुमसे प्यार करूँगी
अपने दिल पर उतना इख़्तियार करूँगी
कभी छलक जाए गर मोहब्बत आँखों से
ना मैं इंकार करूँगी ना ही इकरार करूँगी— % &

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26 APR 2022 AT 21:14

आज कल बस बे-रुख़ी अच्छी लगती है
चेहरे पर अब झूठी हँसी अच्छी लगती है
दुनिया की हकीकत देखकर होश उड़ गए
अब ख़्वाबों की बे-ख़ुदी अच्छी लगती है— % &

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25 MAR 2022 AT 18:44

फ़ैसला मुश्किल था मगर दिल पर इख़्तियार किया
पल में बिछड़ने दिया हमने ताउम्र जिसे प्यार किया — % &

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11 MAR 2022 AT 21:16

दिन-ब-दिन अपनी लापरवाही को नजरअंदाज़ करते-करते....
कितने काम अधूरे रह जाते हैं
आज कल आज करते-करते— % &

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24 FEB 2022 AT 22:03

अब मजलिसें मुझे रास नहीं आती
ज़हर जैसी तर्ज़-ए-कलाम हो गई

लफ़्ज होते हैं आर-पार दिल के....
चाकू छुरी तो ख़ामख़ाह बदनाम हो गई— % &

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