छोड़ते-छोड़ते ही सारा उम्र बीत जाएगा, ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पर, अकेला ही रह जाएगा, तरसेगा फिर कि कोई हाल पूछ ले, कोई घास भी न डालेगा, चाहे कितना भी गिड़गिड़ायेगा।।
खुद की, परिवार की व अन्य प्रियजनों की अनैतिक कामनाओं को पूरा करने के लिए आदमी दिन ब दिन बेईमान और भ्रष्ट होता जाता है। इस तरह घरों से निकला भ्रष्टाचार पूरी दुनिया में व्याप्त हो जाता है।